चीन वर्तमान में तीन गंभीर संकटों से एक साथ जूझ रहा है। पहला, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) के अंतर्गत विश्व के तमाम देशों में ढांचागत परियोजनाएं निरस्त की जा रही हैं। दूसरा, रियल एस्टेट कंपनी एवरग्रैंड पर वित्तीय संकट आ गया है। तीसरा, बिजली के उत्पादन में कमी आ रही है। इससे शहरों में पावर कट किए जा रहे हैं। इन तीनों में बीआरआइ का संकट बड़ा है। बीआरआइ को चीन ने अपनी अतिरिक्त या सरप्लस पूंजी के निवेश के लिए बनाया था। पिछले 20 वर्षों में चीन के निर्यात ऊंचे रहे हैं और घरेलू बचत दर भी ऊंची रही है। इन मदों से अर्जति रकम को उसे कहीं न कहीं निवेश करना था। इसके लिए चीन ने बीआरआइ योजना को बनाया। इसके तहत उसने विश्व के तमाम देशों को विभिन्न बुनियादी संरचना खड़ा करने के कर्ज दिए। विश्व बैंक ने 2019 में बीआरआइ का अध्ययन किया। उसने पाया कि इसके तहत बनाई जा रहीं परियोजनाओं से स्थानीय देशों को लाभ हो सकते हैं।

चीन से यूरोप के बीच बिछाई जा रही रेललाइन के कारण कजाखिस्तान और पोलैंड में विनिर्माण के बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन बीआरआइ में भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है। अक्सर ज्यादा लाभ दिखाकर परियोजनाओं को स्वीकृत करा लिया जाता है। इसलिए तमाम देश इससे पीछा छुड़ाने लगे हैं। पहले मालदीव में चीन समर्थक प्रोग्रेसिव पार्टी द्वारा बीआरआइ का समर्थन किया जा रहा था, लेकिन पिछले दिनों वहां हुए चुनाव में प्रोग्रेसिव पार्टी हार गई और मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी जीती, जो कि बीआरआइ का विरोध करती है। मलेशिया के प्रधानमंत्री ने बीआरआइ को उपनिवेशवाद का नया रूप बताया है। म्यांमार ने क्यौकप्यू बंदरगाह परियोजना को निरस्त कर दिया है। श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान ने भी परियोजनाओं का रूप बदलने का आग्रह किया है।

स्पष्ट है कि बीआरआइ के लाभ होने के बावजूद इसमें कई खामियां हैं। यदि चीन इनको दूर करने में सफल होता है तो बीआरआइ आगे बढ़ेगी, अन्यथा इसके डूबने की आशंका है। भारत को भी इस दिशा में कदम उठाने चाहिए, अन्यथा हमारा माल विश्व बजार में चीन की तुलना में महंगा पड़ने लगेगा।

चीन का दूसरा संकट एवरग्रैंड कंपनी का है। इसके पीछे चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का मौलिक विचार है। उन्होंने कहा है कि कंपनियों के लाभ की तुलना में प्रदूषण, असमानता और वित्तीय अस्थिरता को दूर करना ज्यादा जरूरी है। इसी के चलते उन्होंने एवरग्रैंड कंपनी द्वारा अधिक ऋण लेने पर अंकुश लगाया है। उन्होंने नई वित्तीय नीति बनाई है, जिसके अंतर्गत किसी भी कंपनी को तीन मदों पर आंका जाता है। पहला यह कि लिए गए ऋण के सामने उसके पास संपत्ति कितनी है? दूसरा यह कि उसके पास अल्पकालीन कर्ज की तुलना में नगद कितनी है? तीसरा यह कि उसके द्वारा कुल लिए गए ऋण की तुलना में उसकी अपनी पूंजी कितनी है? यदि कोई कंपनी किसी एक बिंदु पर भी फेल हो जाती है, तो बैंकों द्वारा उसे ऋण नहीं दिया जा सकता। एवरग्रैंड ने तमाम परियोजनाओं को पूरा किया है, लेकिन कोविड संकट के कारण उसकी ओर से बनाए गए फ्लैटों की बिक्री कम हो गई। इसलिए भी एवरग्रैंड संकट में आ गया है। इससे देश की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए चीन की सरकार ने सरकारी इकाइयों को आदेश दिया है कि वे एवरग्रैंड की परियोजनाओं को खरीद लें। जिस प्रकार अपने देश में संकटग्रस्त यस बैंक का अधिग्रहण सरकारी बैंक द्वारा किया गया, उसी प्रकार चीन की सरकारी कंपनियां एवरग्रैंड की संकटग्रस्त परियोजनाओं को खरीदकर उस कंपनी को डूबने से बचाने का प्रयास कर रही हैं।

देखा जाए तो चीन की सरकार ने एवरग्रैंड को सरकारी ऋण देकर बचाने का प्रयास नहीं किया है। दोनों विधाओं में मौलिक अंतर है। 2008 में अमेरिका में जब जनरल मोटर्स कंपनी संकट में आ गई थी, तो अमेरिकी सरकार ने जनरल मोटर्स को और ऋण देकर बचाया था। चीन की सरकार ने एवरग्रैंड को इस प्रकार का ऋण देकर बचाने से इन्कार कर दिया और उसे मजबूर किया कि वह अपनी कुछ संपत्तियों को बेचकर अपने ऋण को कम करे। ऐसा करने से एवरग्रैंड के बचे रहने की संभावना बढ़ जाएगी और चीन की सरकार के ऊपर अनावश्यक वित्तीय भार भी नहीं आएगा। इससे चीन की अर्थव्यवस्था भी बची रहेगी। यद्यपि वर्तमान में यह प्रक्रिया संकट के रूप में दिख रही है। जैसे समय पूर्व उपचार भी बीमारी जैसा ही लगता है।

चीन का तीसरा संकट बिजली का है। चूंकि शी चिनफिंग ने प्रदूषण, असमानता और वित्तीय अस्थिरता को दूर करने का संकल्प लिया है। लिहाजा उन्होंने प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए थर्मल बिजली संयंत्रों को आदेश दिया कि वे अपने प्रदूषण स्तर को कम करें। इन नियमों का पालन न करने के कारण कई बिजली संयंत्रों को बंद कर दिया गया। फलस्वरूप बिजली का उत्पादन कम हो गया। कई बिजली कंपनियों ने बड़ी आद्योगिक इकाइयों को बिजली देनी बंद कर दीं। कहीं-कहीं शहरों में पावर कट भी लागू करने पड़े हैं। देखा जाए तो चीन यह संकट अपने ऊपर स्वयं लाया है, क्योंकि वह स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन की ओर बढ़ना चाहता है। भारत की तुलना में चीन में सौर और पवन ऊर्जा का उत्पादन धीरे-धीरे बढ़ रहा है। इसलिए चीन ने यह सख्त कदम उठाया है। इसके फलस्वरूप चीन में भी सौर और पवन ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा मिलने की संभावना है। ऐसा होने पर चीन शीघ्र ही इस बिजली संकट से उबर जाएगा।

चीन के इन तीनों संकट के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष हैं। बीआरआइ में यदि चीन ने अपनी परियोजनाओं का सही आर्थिक मूल्यांकन कराकर घटिया परियोजनाओं को निरस्त कर दिया और केवल सुदृढ़ परियोजनाओं को ही बढ़ाया तो बीआरआइ सफल हो जाएगी, अन्यथा डूबेगी। एवरग्रैंड जैसी कंपनियां यदि अपनी घटिया संपत्तियों को बेचकर सुदृढ़ हो गईं तो चीन वित्तीय संकट से बच जाएगा। इसके विपरीत यदि चीन ने बड़ी कंपनियों के वित्तीय दुराचार पर अंकुश नहीं लगाया तो उसकी अर्थव्यवस्था डूबेगी। यदि सौर और पवन ऊर्जा का उत्पादन बढ़ गया तो बिजली संकट से भी चीन बच जाएगा। इससे उसका पर्यावरण सुधर जाएगा, जिससे अर्थव्यवस्था को पुन: गति मिलेगी। देखना है कि चीन इन कदमों को उठाने में सफल होता है कि नहीं?