कहते हैं कि कोर्ट (Court) कचहरी के चक्कर में पड़ने वाला जीते जी मर जाता है. मुकदमा लड़ने और न्याय की उम्मीद में पीड़ितों के जूते घिस जाते हैं. कानूनी दांवपेच, सच और झूठ की दलीलों में लोग सालों मुकदमा लड़ते हैं. कभी सच न्यायालय की सीढ़ियों पर दम तोड़ देता है तो कभी झूठ बुलंदियों के साथ सच में बदल जाता है. कानपुर देहात (Kanpur Dehat) के माती कोर्ट में एक ऐसा मुकदमा देखने को मिला जिसने लोगों को हैरत में डाल दिया. हैरत भी तब हुई जब एक मुर्दा गवाही देने लगा.

 

कानपुर देहात के माती कोर्ट परिसर में एक मुकदमे की ऐसी तारीख पड़ी जो शायद इतिहास के पन्नों में लिखी जाने वाली है. कानपुर देहात की कोर्ट में चल रहे मुकदमे में तारीख के समय न्यायालय की जानकारी में मर चुके वादी ने न्यायाधीश के सामने पहुंचकर अपने जिंदा होने की गवाही दी जिसके बाद न्यायालय में बैठे और मौजूद सभी लोग हैरत में पड़ गए. कागजों की लिखा पढ़ी में जो शख्स मर चुका था वह भला अपने मुकदमे में गवाही देने कैसे आ सकता है. लेकिन कानपुर देहात के नगर पंचायत अध्यक्ष रसूलाबाद के लेटर पैड पर वादी मुकदमा रईस अहमद बहुत पहले मर चुके थे जिसका प्रमाण न्यायालय के समक्ष दाखिल किया जा चुका था. लेकिन मर चुके रईस अहमद ने अपने जिंदा होने का कोर्ट में दावा भी किया और चल रहे अपने मुकदमे में बतौर गवाह गवाही भी दी.

मर चुका वादी न्यायाधीश के सामने जिंदा हो गया !

 

आपको बताते हैं कि आखिर कैसे मर चुका वादी न्यायाधीश के सामने कैसे जिंदा हो गया. दरअसल, साल 2018 में कानपुर देहात के रसूलाबाद क्षेत्र के नेहरू नगर के रहने वाले रईस अहमद की बेटी को रसूलाबाद के रहने वाले शाहरुख नाम के शख्स ने बहला-फुसलाकर अपने वश में कर लिया था और जिसके बाद वह उस नाबालिग लड़की को लेकर कानपुर देहात से गायब हो गया. इसके बाद नाबालिग बेटी के पिता ने थाना रसूलाबाद में बेटी के अपहरण और बहला-फुसलाकर ले जाने के मामले में मुकदमा दर्ज कराया. जिसके बाद थाने से मुकदमा न्यायिक क्षेत्र में दाखिल हो गया. कानपुर देहात के माती मुख्यालय में स्थित कोर्ट में नाबालिग बेटी के पिता रईस अहमद का मुकदमा चलने लगा. हालांकि कुछ समय बाद शाहरुख गिरफ्तार हुआ बतौर अभियुक्त और रईस अहमद की नाबालिग बेटी भी बरामद हो गई.

 

इसके बाद मुकदमा न्यायालय में चलता रहा लेकिन इसी बीच रसूलाबाद नगर पंचायत अध्यक्ष के लेटर पैड पर रईस अहमद के नाम का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हो गया और यह मृत्यु प्रमाण पत्र अभियुक्त की ओर से पुलिस के माध्यम से न्यायालय में दाखिल किया गया जिसके बाद न्यायालय ने वादी को मरा हुआ मानकर केस को चलने दिया. लेकिन मुकदमे में तारीख पर ना तो वकील की ओर से कोई प्रार्थना पत्र दिया जाता था और ना ही मुकदमे के संबंध में कोई न्यायालय आता था. लाजमी है कि मुकदमा बल ना देने की वजह से अभियुक्त के पक्ष में जा रहा था. लेकिन इसी बीच न्यायालय ने वादी मुकदमा रईस अहमद के खिलाफ नॉन बेलेबल वारंट जारी कर दिया और उसका एक सम्मन उनके स्थाई पते पर पहुंचा दिया. जिसके बाद रईस अहमद जो कि कानून की नजर में मर चुके थे वह खुद न्यायालय पहुंचे और न्यायाधीश के सामने अपने जिंदा होने की गवाही देने लगे.

 

कोर्ट परिसर में हंगामा हो गया

 

इसे सुनने के बाद और देखने के बाद कोर्ट परिसर में हंगामा हो गया. आखिर दस्तावेजों में मर चुका एक शख्स कैसे गवाही दे सकता है. लेकिन यह कहानी नहीं हकीकत है और ऐसा हुआ भी है. मर चुके वादी मुकदमा रईस अहमद चीख चीखकर अपने जिंदा होने की बात न्यायाधीश के सामने कहते रहे और न्यायालय में दाखिल हुए खुद के मृत्यु प्रमाण पत्र को चैलेंज कर दिया. इसके बाद न्यायालय ने फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनाए जाने के संबंध में नगर पंचायत अध्यक्ष रसूलाबाद राजरानी को और थाना रसूलाबाद के प्रभारी को सम्मन जारी कर तलब कर लिया. उनसे यह कहा गया कि वह इस बात का स्पष्टीकरण करें कि आखिर जो शख्स जिंदा है उस का मृत्यु प्रमाण पत्र न्यायालय में कैसे दाखिल हो गया. जाहिर सी बात है कि बनाया गया मृत्यु प्रमाण पत्र पूरी तरीके से फर्जी था.

 

वहीं कानपुर देहात के कोर्ट नंबर 1 में चलने वाले इस अजीब मुकदमे में जिला न्यायालय के शासकीय अधिवक्ता राजू पोरवाल ने बताया कि नगर पंचायत अध्यक्ष और थाना रसूलाबाद दोनों को ही स्पष्टीकरण के लिए न्यायालय में तलब कर लिया गया है. साक्ष्य के आधार पर दंडनीय कार्यवाही की जाएगी. नगर पंचायत अध्यक्ष के प्रतिनिधि की बात मानें तो उनका साफ तौर से कहना है कि यह प्रमाण पत्र पूरी तरीके से फर्जी है और इस पर अंकित हस्ताक्षर भी नगर पंचायत अध्यक्ष के नहीं हैं. लेकिन वहीं जब हमने कानपुर देहात पुलिस के आला अधिकारियों से इस बाबत बात की तो उन्होंने साफ तौर से यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि यह मामला न्यायालय में चल रहा है.