पिछले हफ्ते अपनी किशोर बेटी के साथ बातचीत करते हुए मैंने एक खबर की ओर इशारा किया था, जिसमें स्कॉटलैंड के उत्तरी आयरशार में कई स्कूल कैंटीन में चेहरे की पहचान करने वाली तकनीक के उपयोग पर चिंता व्यक्त की गई थी। इस क्षेत्र के नौ स्कूलों ने हाल ही में दोपहर के भोजन लिए अधिक तेज़ी से भुगतान करने और कोविड के खतरे को कम करने के साधन के रूप में इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया, हालांकि उन्होंने बाद में इसे रोक दिया। जब मैंने अपनी बेटी से पूछा कि क्या उसे अपने स्कूल कैंटीन में चेहरे की पहचान करने वाली तकनीक के इस्तेमाल के बारे में कोई चिंता है, तो उसने लापरवाही से जवाब दिया: “वास्तव में नहीं। बल्कि इससे बहुत तेजी से काम होते हैं। उसके शब्द इस चिंता की पुष्टि करते हैं कि वयस्कों की तुलना में बच्चे अपने डेटा अधिकारों के बारे में बहुत कम जागरूक हैं।  डेटा सुरक्षा कानूनों के तहत बच्चों के लिए विशेष प्रावधान और सुरक्षा उपाय हैं, फिर भी इस तकनीक का बच्चों पर उपयोग गोपनीयता का असाधारण जोखिम पैदा कर सकता है। इस तकनीक से डेटाबेस में पहले से मौजूद तस्वीरों के जरिये किसी व्यक्ति की पहचान की जाती है।  यह तकनीक विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) द्वारा संचालित होती हैं, जिसे ‘मशीन लर्निंग’ तकनीक कहा जाता है। चेहरे की पहचान करने वाली तकनीक का उपयोग अब कई तरह से किया जाता है, जैसे कि कर्मचारियों की पहचान सत्यापित करने के लिए, व्यक्तिगत स्मार्टफोन अनलॉक करने के लिए, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों को टैग करने के लिए, और यहां तक ​​कि कुछ देशों में निगरानी उद्देश्यों के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह तकनीक अपने आप में समस्या नहीं है। बल्कि, मुद्दा यह है कि इसका उपयोग किस लिए किया जा रहा है। कई बार इसका गलत उद्देश्यों के लिये भी इस्तेमाल होता देखा गया है। ऐसे में स्कूलों में इसके इस्तेमाल से बच्चों की निजता को लेकर कई सवाल पैदा हो गए हैं। इस स्थिति में हम कुछ  सतर्कता जरूर बरत सकते हैं।
यदि स्कूल में इस तकनीक का उपयोग किया जाता है, तो हमें स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए कि छात्रों की तस्वीरों का किस हद तक इस्तेमाल किया जाना है। यह जानना जरूरी है कि इन तस्वीरों का इस्तेमाल केवल भोजन के भुगतान के लिए ही किया जा रहा है या फिर किसी और काम में भी इसका उपयोग हो रहा है।
उदाहरण के लिए, उन्हें किसी तीसरे पक्ष के साथ तो साझा नहीं किया  जाएगा। यदि हां तो किस उद्देश्य से? मान लीजिए कि इसके जरिए किसी तीसरे पक्ष को बच्चे के खान-पान की प्राथमिकताओं के बारे में जानकारी मिल जाती है तो वह इस डेटा का कारोबारी उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल कर सकता है।
इस बारे में भी जानकारी होने चाहिये कि तस्वीरों की सुरक्षा कैसे की जाएगी। यदि छात्रों की तस्वीरें सुरक्षित नहीं हैं या सिस्टम हैकर्स को रोकने के लिए पर्याप्त मजबूत नहीं है, तो यह साइबर सुरक्षा जोखिम पैदा करता है।
चेहरे की पहचान करने वाली तकनीक के इस्तेमाल के और भी जोखिम हो सकते हैं। इस तकनीक से बच्चों की निगरानी आम होने का खतरा भी बढ़ रहा है। इस तकनीक के कई अन्य जोखिम भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, छात्रों से गलत तरीके से फीस ली जा सकती हैं। लिहाजा, कुल मिलाकर इस तकनीक का इस्तेमाल का उपयोग करते समय स्कूलों के साथ-साथ अभिभावकों को भी सतर्क रहने की जरूरत है ताकि इसके दुरुपयोग को रोका जा सके