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नई दिल्ली : केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल परियोजना यानी  देश की पहली बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के निर्माण को लेकर समस्याएं कम होती दिखाई नहीं दे रही है। इस परियोजना के साल 2022 तक पूरा होने की उम्मीद है लेकिन इस पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। सरकार दावे कर रही है कि मुंबई और अहमदाबाद के बीच चलाई जाने वाली इस बुलेट ट्रेन से गुजरात और महाराष्ट्र में उद्योग बढ़ेंगे, नौकरियां पैदा होंगी लेकिन इसके साथ ही बुलेट ट्रेन के रास्ते में पड़ने वाले आदिवासी इलाकों से विरोध के स्वर उठने शुरू हो गए हैंं।

परियोजना के लिए जमीन देने से किया इंकार
खबरों के मुताबिक पालघर जिले के 70 से ज्यादा आदिवासी गांव ने बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए अपनी जमीन देने से मना कर दिया है। इस इलाके से गुजरने वाली परियोजना के खिलाफ बड़े विरोध प्रदर्शन की भी तैयारी की जा रही है। मुंबई और अहमदाबाद को जोड़ने वाले इस हाईस्पीड रेल कॉरिडोर का करीब 110 किलोमीटर का हिस्सा महाराष्ट्र के पालघर जिले से होकर गुजरता है।

महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में हो रहा विरोध
रेल मंत्रालय के अधिकारी के अनुसार महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में हमें विरोध झेलना पड़ रहा है लेकिन हमें उम्मीद है कि इस प्रॉजेक्ट पर काम टाइमलाइन के भीतर ही शुरू हो जाएगा। हम जमीन अधिग्रहण के लिए किसानों को सर्किल रेट से 5 गुना अधिक दाम ऑफर कर रहे हैं। अधिकारी के अनुसार पालघर जिले के कुछ गांवों में 200 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण को लेकर कुछ विरोध है। इनमें से ज्यादातर आदिवासी गांव हैं और इनमें विकास की कमी है।

मुआवजे से खुश नहीं किसान
अधिकारी ने बताया कि इन 73 गांवों में से 50 गांव जल्दी ही राजी हो सकते हैं। इनसे बातचीत की प्रक्रिया जारी है। मुख्य समस्या 23 गांवों के साथ है जो रेलवे के साथ किसी भी तरह की वार्ता के लिए ही तैयार नहीं हैं। हाल में ही महाराष्‍ट्र के ठाणे जिले के किसानों ने बुलेट ट्रेन परियोजना के खिलाफ कलेक्ट्रेट कार्यालय पर प्रदर्शन किया था। यहां के किसान जमीन अधिग्रहण के तरीके और मुआवजे से खुश नहीं हैं। बता दें कि इस प्रोजेक्‍ट पर 1,08,000 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। बुलेट ट्रेन अहमदाबाद से मुंबई के बीच चलेगी जो कि 508 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। इस प्रोजेक्‍ट के खर्च का 81 फीसदी हिस्सा जापान की सरकार से मिलने वाले लोन से पूरा होगा।