maa shailputri

आज से चैत्र नवरात्र के साथ ही हर जगह धार्मिक आयोजन शुरू हो गए हैं। साल 2017 के चैत्र नवरात्र के साथ ही हिंदू नवसंवत्सर भी शुरू हो गया है। 9 दिनों तक चलने वाली इस पूजा में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाएगी।

नवरात्र के पहले दिन मां के जिस रूप की उपासना की जाती है, उसे शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण मां दुर्गा के इस रूप का नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा था।

शास्त्रों के मुताबिक माता शैलपुत्री का स्वरुप अति दिव्य है। मां के दाहिने हाथ में भगवान शिव द्वारा दिया गया त्रिशूल है जबकि मां के बाएं हाथ में भगवान विष्णु द्वारा प्रदत्त कमल का फूल सुशोभित है। मां शैलपुत्री बैल पर सवारी करती हैं और इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना जाता है।

नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के शैलपुत्री वाले इस रूप की अराधना करने से आकस्मिक आपदाओं से मुक्ति प्राप्त होती है। इसलिए दुर्गम स्थानों पर बस्तियां बनाने से पहले मां शैलपुत्री की स्थापना की जाती है। माना जाता है कि इनकी स्थापना से वह स्थान सुरक्षित हो जाता है और मां की प्रतिमा स्थापित होने के बाद उस स्थान पर आपदा, रोग, व्याधि, संक्रमण का खतरा नहीं होता है तथा जीव निश्चित होकर उस स्थान पर अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

ऐसा कहा गया है कि मां दुर्गा के इस शैलपुत्री स्वरूप का पूजन करने से उपासक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और कन्याओं को मनोवांछित वर की प्राप्ति भी होती है और साधक का मूलाधार चक्र जागृत होने में सहायता मिलती है। माँ शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए पूजन में लाल फूल, नारियल, सिंदूर और घी के दीपक का प्रयोग किया जाता है।

मां शैलपुत्री का पूजन और स्तुति इस मंत्र द्वारा करें

वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।
वृषारूढ़ां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

अर्थात् मैं मनोवांछित लाभ के लिये अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाली, वृष पर सवार रहने वाली, शूलधारिणी और यशस्विनी मां शैलपुत्री की वंदना करता हूं।

माँ शैलपुत्री पूजन विधि

माँ दुर्गा को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करुणा और ममता का स्वरुप मानकर पूजा की जाती है। कलश स्थापना से इनकी पूजा शुरु की जाती है। इनकी पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, नवग्रहों, दिक्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता है और कलश में उन्हें विराजने के लिए प्रार्थना सहित उनका आह्वान किया जाता है।