सावन

भगवान शिव भोले हैं। वह निराले हैं लेकिन भाव के भूखे हैं। मात्र एक लोटा जल के अभिषेक से प्रसन्न होते हैं तथा आकड़े के फूल पसंद करते हैं। बिल्व पत्र चढ़ाने से शीघ्र प्रसन्न होते हैं। अगर शिवभक्त के पास कुछ नहीं तो मात्र बिल्व पत्र चढ़ाकर एक लोटा शुद्ध जल अर्पित कर शिव आराधना करने से भोले प्रसन्न हो जाते हैं।

बिल्व पत्र के पुंज में लक्ष्मी जी का निवास है। प्राचीन ग्रंथों में बिल्व पत्र की महानता का विवरण मिलता है। भगवान विष्णु ने विश्व कल्याण के लिए शिवलिंग की आराधना की थी जिसके फलस्वरूप लक्ष्मी जी की दाईं हथेली से बिल्व पत्र पौधा प्रस्फुटित हुआ था। मान्यता है कि भगवान शिव को बिल्व पत्र चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

शिव स्कंद एवं लिंग पुराणों में बिल्व पत्र का वर्णन बहुत विस्तार से मिलता है। बिल्व पत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने का विशेष विधान है। शास्त्रों के अनुसार, बिल्व पत्र को निशीथकाल में नहीं चढ़ाना चाहिए। चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या तिथियों में नहीं चढ़ाना चाहिए बिल्व पत्र में छेद न हो तथा वह कटा-फटा न हों, देखने में सुंदर हो। अगर शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए नए बिल्व पत्र उपलब्ध न हों तो चढ़ाए गए पत्तों को बार-बार धोकर चढ़ा सकते हैं।