अमेरिका AUKUS समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी टेक्नोलॉजी मुहैया करा रहा है। चीन, फ्रांस के बाद अब मिस्र में इस समझौते पर सवाल खड़े हो रहे हैं। मिस्र के एक पॉलिटिकल एक्सपर्ट और रिसर्चर बशीर अब्दुल फतह ने कहा कि अमेरिका ने AUKUS के तहत परमाणु हथियारों के मुद्दे पर दोहरा मापदंड अपनाया है।

फतेह ने कहा कि ब्रिटेन के साथ मिलकर अमेरिका ऑस्ट्रेलिया को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी ऑफर कर रहा है, जबकि वो इस मामले को लेकर ईरान पर पाबंदी लगाए हुए है। उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी हासिल करने वाले देश परमाणु हथियार बना सकते हैं। ऐसे में यह कदम परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का उल्लंघन है। साथ ही यह करार पूरी तरह से भेदभाव करने वाला और दोहरे मापदंड अपनाए हुए है।

कई देशों को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी पाने से रोकता है US
इजिप्टियन एक्सपर्ट ने कहा कि अमेरिका दुनिया के कई देशों को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी हासिल करने से रोकता है। इसके लिए शांति या सुरक्षा का हवाला दिया जाता है। जबकि वह कई देशों को परमाणु तकनीक हासिल करने की इजाजत दे रहा है। आखिर इसे सही कैसे ठहराया जा सकता है।

AUKUS समझौता क्या है?
ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका (AUKUS) के बीच नया रक्षा समूह बना है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में केंद्रित होगा। US, ऑस्ट्रेलिया से परमाणु पनडुब्बी की टेक्नोलॉजी साझा करेगा। इस नए समूह का मकसद चीन के हिंद प्रशांत और दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में उसके प्रभाव को रोकना है। तीनों देश साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और पानी के नीचे की क्षमताओं समेत अपनी तमाम सैन्य क्षमताओं को बेहतर बनाने के लिए एक-दूसरे से तकनीक साझा करेंगे।

फ्रांस भी इस नए ग्रुप का विरोध कर रहा
अब अमेरिकी सहयोग से पनडुब्बी तकनीक के आधार पर ऐडिलेड में नई पनडुब्बियां बनेंगी। ऑस्ट्रेलिया ने चार साल पहले इस तरह की सबमरीन के लिए फ्रांस से 2.9 लाख करोड़ रुपए की डील रद्द कर दी। इस घाटे से तिलमिलाए फ्रांस ने बाइडेन को ट्रंप जैसा बताया है।

AUKUS से चीन क्यों डरा हुआ है?
अब अमेरिका के बड़ी संख्या में फाइटर प्लेन और अमेरिकी सैनिक ऑस्ट्रेलिया में तैनात होंगे। इससे क्षेत्र में अमेरिकी दबदबा बढ़ेगा। अमेरिका-चीन में तनातनी बढ़ेगी। चीन का दावा है कि यह भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता को खतरे में डालेगा व मुल्कों के बीच हथियारों की दौड़ को बढ़ाएगा।