राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशमी के अपने संबोधन में भारत की बढ़ती आबादी को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की मांग को फिर से दोहराया है। उन्होंने कहा है कि जनसंख्या नीति होनी चाहिए। एक्सपर्ट्स की मानें तो सरकार प्रति परिवार 2.1 बच्चों के फ़ॉर्मूले पर सहमत हुई है लेकिन मुझे लगता है कि इस पर फिर से विचार किए जाने की जरूरत है। देश को एक ऐसी नीति की जरूरत है जो अगले 50 सालों को ध्यान में रखकर बनाई जाए। उन्होंने आगे कहा है कि इस तरह की नीति से अवैध घुसपैठ को रोकने, जबरदस्ती धर्मान्तरण और प्राकृतिक संसाधनों पर समान अधिकार सुनिश्चित करने के कई मकसद पूरे होंगे।

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों की आबादी में बदलाव के लिए अवैध घुसपैठ और जबरन धर्मांतरण को जिम्मेदार ठहराया है। संघ का कहना है कि 11 राज्यों में ईसाई आबादी की दशकीय बढ़ोतरी दर 30 फीसदी से अधिक है और नौ राज्यों में मुसलमानों की दशकीय बढ़ोतरी दर 30 फीसदी से अधिक रही है।

जनसंख्या नीति पर लगातार अभियान चलाए जाने के बाद से बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और असम जैसे राज्यों ने हाल ही में जनसंख्या नियंत्रण नीति पेश करने की अपनी मंशा की घोषणा की है। विपक्षी दलों ने तथाकथित जनसंख्या नीति को ध्रुवीकरण का नया मॉडल बताया है। आम आदमी पार्टी ने कहा है कि इससे एक विशेष समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। पार्टी ने इसे विभाजनकारी बताया है।

संघ के एक पदाधिकारी ने जनसंख्या के बदलते पैटर्न को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि इसे राजनीतिक और सांप्रदायिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। बॉर्डर प्रदेशों में जनसंख्या में तेजी से बदलाव सुरक्षा और स्थिरता के लिए खतरे की घंटी है। असम और उत्तराखंड जैसे राज्यों में लोग जनसंख्या में बदलाव से दोगुना प्रभावित होते हैं। इससे क्षेत्र में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने की भी संभावना है।