नई दिल्लीः  राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य ठहराने से जुड़ी चुनाव आयोग की सिफारिश को रविवार को मंजूर कर लिया। लाभ के पद के चलते आयोग ने इन विधायकों को अयोग्य ठहराया था। विधि मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में राष्ट्रपति के हवाले से कहा गया कि निर्वाचन आयोग द्वारा व्यक्त की गई राय के आलोक में दिल्ली विधानसभा के 20 सदस्यों को अयोग्य करार दिया गया है। आप विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त किया गया था और इस पद को याचिकाकर्ता ने लाभ का पद बताया था। आप को झटका देते हुए चुनाव आयोग ने शुक्रवार को राष्ट्रपति से 20 विधायकों को अयोग्य ठहराने का अनुरोध किया था।

अधिसूचना में कहा गया, ‘‘निर्वाचन आयोग द्वारा व्यक्त की गई राय के आलोक में, मैं, रामनाथ कोविंद, भारत का राष्ट्रपति, अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुये…दिल्ली विधानसभा के उक्त 20 सदस्य विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराये जाते हैं।’’ आप के सभी 20 विधायकों ने चुनाव आयोग की सिफारिश को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी लेकिन न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कोई अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था। इस मामले में 21 विधायकों को नोटिस भेजा गया था। राजौरी गार्डन से तत्कालीन विधायक जरनैल सिंह के खिलाफ भी लाभ के पद पर नियुक्ति की शिकायत थी लेकिन उन्होंने 17 जनवरी 2017 को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और इस सीट पर पिछले साल अप्रैल में उपचुनाव भी हो चुका है। इसलिए उन्हें योग्य घोषित करने का मामला नहीं बनता।

ये है पूरा मामला 

दिल्ली सरकार ने मार्च, 2015 में आप के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। इसको लेकर भाजपा और कांग्रेस ने सवाल उठाए थे। प्रशांत पटेल नाम के शख्स ने राष्ट्रपति के पास याचिका लगाकर आरोप लगाया था कि ये 21 विधायक लाभ के पद पर हैं, इसलिए इनकी सदस्यता रद्द होनी चाहिए। दिल्ली सरकार ने दिल्ली असेंबली रिमूवल ऑफ डिस्क्वॉलिफिकेशन ऐक्ट-1997 में संशोधन किया था। इस विधेयक का मकसद संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से छूट दिलाना था, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नामंजूर कर दिया था। दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने भी विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने के फैसले का विरोध किया था और दिल्ली हाईकोर्ट में आपत्ति जताई थी। केद्र का कहना था कि  दिल्ली में सिर्फ एक संसदीय सचिव हो सकता है, जो मुख्यमंत्री के पास होगा। इन विधायकों को यह पद देने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है।