Arjan Singh death

भारतीय वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह का पार्थिव शरीर पंच तत्व में विलीन हो गया है। नई दिल्ली के बरार स्क्वायर में उन्हें मुखाग्नि दी गई। अर्जन सिंह का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया गया है, उन्हें 21 तोपों की सलामी भी दी गई, इसके साथ ही उन्हें फ्लाई पास्ट भी दिया गया। अर्जन सिंह के सम्मान में नई दिल्ली की सभी सरकारी इमारतों पर लगा राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया गया।

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बरार स्क्वायर पहुंच कर उन्हें अंतिम विदाई दी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी बरार स्क्वायर पहुंच अर्जन सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके साथ ही बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी वहां पहुंच उन्हें श्रद्धांजलि दी। सेना के तीनों अंगों के प्रमुख भी अर्रजन सिंह को अंतिम विदाई देने के लिए मौजूद रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गुजरात से लौटने के बाद सीधे अर्जन सिंह के घर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इससे पहले पीएम उन्हें अस्पताल में भी मिलने गए थे। PM ने उनके लिए वहां पर एक संदेश भी लिखा था।

98 वर्षीय नायक को सेना के रिचर्स एंड रेफरल अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां शनिवार शाम उनका निधन हो गया। अर्जन सिंह का पार्थिव शरीर दिल्ली के 7A कौटिल्य मार्ग स्थित उनके आवास में रखा गया है, जहां राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण, तीनों सेना प्रमुख सहित कई दूसरे गणमान्य लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

दमदार रहा करियर-
अर्जन सिंह वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के नायक थे और इकलौते वायु सेना अधिकारी थे, जिन्हें ‘फाइव स्टार रैंक’ दिया गया था। उन्हें 44 साल की उम्र में ही भारतीय वायु सेना का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई थी, जिसे उन्होंने शानदार तरीके से निभाया। वर्ष 1965 की लड़ाई में जब भारतीय वायु सेना अग्रिम मोर्चे पर थी, तब वह उसके प्रमुख थे।

अलग-अलग तरह के 60 से भी ज्यादा विमान उड़ाने वाले सिंह ने भारतीय वायु सेना को दुनिया की सबसे शक्तिशाली वायु सेनाओं में से एक बनाने और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।

अर्जन सिंह बहुत कम बोलने वाले शख्स के तौर पर पहचाने जाने जाते थे। वह न केवल निडर लड़ाकू पायलट थे, बल्कि उनको हवाई शक्ति के बारे में गहरा ज्ञान था, जिसका वह हवाई अभियानों में व्यापक रूप से इस्तेमाल करते थे। उन्हें 1965 में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।