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नई दिल्ली, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है। अब जेएनयू द्वारा आरक्षित श्रेणी में आने वाले छात्रों के साथ कथित तौर पर गड़बड़ी करने का मामला सामने आया है। विपक्ष के 33 सांसदों ने केंद्र सरकार से इसकी शिकायत की है। सांसदों ने मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को इस बाबत खुला पत्र लिखा है। जनप्रतिनिधियों का आरोप है कि जेएनयू प्रशासन वर्ष 2018-19 के शैक्षणिक सत्र के लिए एमफिल और पीएचडी में दाखिला लेने वालों छात्रों के साथ गड़बड़ी कर रहा है। इसमें आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। सांसदों की चिट्ठी जेएनयू छात्र संघ की उस अपील के बाद सामने आई है, जिसमें लोकसभा से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों को मिलने वाले लाभ को फिर से दिलाने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की गई थी। सांसदों द्वारा लिखे पत्र में कहा गया है कि इस साल दाखिला लेने के लिए जेएनयू की ओर से जारी प्रावधानों में आरक्षण नीति को हटाने के सबूत मिलते हैं। इससे एससी, एसटी, ओबीसी और पीडब्ल्यूडी श्रेणी के छात्र प्रभावित होंगे।

सांसदों की चिट्ठी में जेएनयू की ओर से किए गए प्रावधानों का भी उल्लेख किया गया है। निर्वाचित प्रतिनिधियों ने लिखा, ‘जेएनयू द्वारा जारी प्रावधानों में मौखिक परीक्षा के लिए योग्य होने के लिए सभी श्रेणी के छात्रों को लिखित परीक्षा में 50 फीसद अंक लाने होंगे। इससे यह लगता है कि चयन प्रक्रिया के लिए मौखिक परीक्ष ही एकमात्र कसौटी है। विश्वविद्यालय ने चयन प्रक्रिया में भेदभाव का अध्ययन करने के लिए वर्ष 2016 में एक समिति का गठन किया था। इसमें मौखिक परीक्षा का विशेष तौर पर संदर्भ दिया गया था। समिति ने जांच के दौरान मिले आंकड़ों के आधार पर तैयार रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें मौखिक परीक्षा के अंकों को 30 से कम कर 15 अंक करने की सिफारिश की गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा करने से छात्रों के साथ होने वाले भेदभाव को दूर किया जा सकता है।’ सांसदों द्वारा लिखे गए पत्र में जेएनयू के दाखिला प्रावधानों को केंद्रीय शिक्षण संस्थान आरक्षण कानून का उल्लंघन करार दिया गया है। बता दें कि जेएनयू पिछले कुछ महीनों से अलग-अलग मुद्दों को लेकर विवादों में रहा है।