धामी सरकार के बजट से सीमांत गांवों का विकास तेज करने की जरूरत है। चीन और नेपाल की सीमा से सटे उत्तराखंड के सीमांत गांव पलायन की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। केंद्र सरकार ने ऐसे गांवों की तस्वीर बदलने के लिए वाइब्रेंट विलेज योजना शुरू की है, वहीं प्रदेेश स्तर पर इसके लिए मुख्यमंत्री सीमांत गांव पर्यटन विकास योजना का खाका तैयार किया जा रहा है।

सामरिक सुरक्षा और पर्यावरणीय संरक्षण व संवर्द्धन की दृष्टि से सीमा प्रहरी की भूमिका निभाने वाले सीमांत क्षेत्रों को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बजट से बड़ी उम्मीदें हैं। डबल इंजन की सरकार इन गांवों के ढांचागत विकास की नींव रख सकती है। सीमांत क्षेत्रों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने का अभियान इस बजट के माध्यम से और गति पकड़ सकता है।

उत्तराखंड पलायन निवारण आयोग ने मुख्यमंत्री बार्डर टूरिज्म योजना का खाका तैयार किया है। यदि इस दिशा में सरकार आगे बढ़ती है तो देश का सीमांत क्षेत्र न सिर्फ सुरक्षित होगा, बल्कि यहां स्थानीय आबादी को एक बाद फिर बसाकर उनके रोजगार के द्वार भी खुलेंगे।

आज भी निर्जन हैं सीमांत के कई गांव
भारत-चीन के बीच उत्तराखंड में 345 किमी लंबी सीमा है। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध में उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ के कई गांवों को खाली करा दिया गया था। इनमें से कई गांव आज भी निर्जन हैं। देश की सीमा में लगे यह गांव किसी प्रहरी की भांति काम करते थे। केंद्र सरकार भी ऐसे गांवों को फिर से आबाद करना चाहती है। इसके लिए केंद्र के स्तर पर प्रदेश के उच्चाधिकारियों के साथ कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं।

प्रधानमंत्री की घोषणा को आगे बढ़ाने का सही वक्त
उत्तरकाशी में पर्यटन व्यवसाय से जुड़े अमोद पंवार का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चमोली जिले के सीमांत गांव माणा को प्रथम गांव कहकर संबोधित कर चुके हैं। दूरस्थ और दुर्गम के इन क्षेत्रों के महत्व को भी प्रधानमंत्री रेखांकित कर चुके हैं। उन्होंने अपने संबोधन में सीमांत गांवों के विकास की बात कही थी। प्रधानमंत्री के इस संबोधन के बाद धामी सरकार का यह बजट इस घोषणा के प्रारूप को आगे बढ़ाने का सही वक्त है।

सीमांत गांवों में ढांचागत विकास पर सरकार का फोकस है। इसके तहत बार्डर टूरिज्म विकास जैसी योजना पर काम किया जा रहा है। इसके लिए धन की कमी नहीं आने दी जाएगी, सरकार ने इसके संकेत दिए हैं। सरकार चाहती है कि सीमावर्ती गांवों में फिर से रौनक लौटे, लेकिन इससे पहले वहां लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए संसाधन जुटाने होंगे। बार्डर टूरिज्म इस दिशा में कारगर नीति हो सकती है।