CJI, Deepak Mishra, PM Modi, Nripendra Mishra

नई दिल्ली, कुछ विपक्षी दलों द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर संसद में महा-अभियोग प्रस्ताव लाने की पहल ने कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी दुविधा पैदा कर दी है। जहां तृणमूल कांग्रेस, राकांपा तथा वाम पार्टियां इस प्रकार का प्रस्ताव लाने पर कृतसंकल्प हैं, वहीं कांग्रेस नेतृत्व अनिश्चय की स्थिति में है। बेशक पार्टी यह महसूस करती है कि 4 वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा उठाए गए मुद्दों को हल करने में मुख्य न्यायाधीश विफल रहे हैं और राज्यसभा में उनके विरुद्ध महा-अभियोग लाने के लिए पर्याप्त आधार मौजूद हैं तो भी वह ऐसी पहल के अनुषंगी परिणामों को लेकर चिंतित है।

इस मामले में पार्टी ने कहा है कि जो सांसद महसूस करते हैं कि महा-अभियोग प्रस्ताव लाया जाना चाहिए वे गुलाम नबी आजाद के कार्यालय में रखे रजिस्टर पर हस्ताक्षर करें और 2 अप्रैल को इस संबंध में अंतिम फैसला लिया जाएगा। इसी बीच माकपा महासचिव सीताराम येचुरी चाहते हैं कि चालू संसदीय सत्र में ही महा-अभियोग प्रस्ताव लाया जाना चाहिए। कमाल की बात तो यह है कि तृणमूल नेता ममता बनर्जी भी उनसे सहमत हैं। राकांपा ने अभी कोई औपचारिक फैसला नहीं लिया है जबकि शिवसेना भी उनका साथ देने के विरुद्ध नहीं है। कुछ लोगों की राय है कि महा-अभियोग प्रस्ताव कोई खास लाभदायक नहीं होगा क्योंकि अगले 6 माह में जस्टिस दीपक मिश्रा रिटायर होने जा रहे हैं।

इसी बीच कुछ अन्य नेताओं का मानना है कि सरकार अन्ना हजारे की भूख हड़ताल के बहाने लोकपाल की नियुक्ति प्रक्रिया में तेजी लाएगी और दीपक मिश्रा को ही देश का प्रथम लोकपाल नियुक्त कर देगी। 2 अक्तूबर को रिटायर होने जा रहे दीपक मिश्रा बिना किसी कठिनाई के लोकपाल नियुक्त हो जाएंगे और 6 वर्ष तक इस पद पर मोदी को अपना पसंदीदा व्यक्ति  बैठाने का सौभाग्य  हासिल हो जाएगा। महा-अभियोग प्रस्ताव केवल इस नियुक्ति प्रक्रिया पर कुछ दबाव बनाने का हथकंडा है।