Arjan

भारतीय वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह का पार्थिव शरीर पंच तत्व में विलीन हो गया है। नई दिल्ली के बरार स्क्वायर में उन्हें मुखाग्नि दी गई। अर्जन सिंह को 21 तोपों की सलामी भी दी गई, इसके साथ ही उन्हें फ्लाई पास्ट भी दिया गया। अर्जन सिंह के सम्मान में नई दिल्ली की सभी सरकारी इमारतों पर लगा राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया गया।

बता दें कि मार्शल ऑफ इंडियन एयरफोर्स अर्जन सिंह भारतीय एयरफोर्स के इतिहास में पहले प्रमुख थे, जिन्होंने पहली बार देश के किसी युद्ध में एयरफोर्स का नेतृत्व किया।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी बरार स्क्वायर पहुंच अर्जन सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बरार स्क्वायर पहुंच कर उन्हें अंतिम विदाई दी। इसके साथ ही बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी वहां पहुंच उन्हें श्रद्धांजलि दी। सेना के तीनों अंगों के प्रमुख भी अर्रजन सिंह को अंतिम विदाई देने के लिए मौजूद रहे।

1 अगस्त 1964 को एयर मार्शल चीफ ऑफ एयर स्टाफ बनने के बाद उन्होंने 1965 में पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम को अंजाम दिया। पाकिस्तानी हमले की खबर पाते ही रक्षा मंत्रालय ने सभी सेना प्रमुखों को तलब किया और कुछ मिनटों की इस मुलाकात में अर्जन सिंह से पूछा गया कि वह कितनी जल्दी पाकिस्तान के बढ़ते टैंकों को रोकने के लिए एयर फोर्स का हमला कर सकते हैं। अर्जन सिंह ने रक्षा मंत्रालय से हमला करने के लिए सिर्फ एक घंटे का समय मांगा था।

अर्जन सिंह ने अखनूर की तरफ बढ़ रहे पाकिस्तानी टैंक और सेना के खिलाफ पहला हवाई हमला 1 घंटे से भी कम समय में कर दिया।

दमदार रहा करियर 
अर्जन सिंह वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के नायक थे और इकलौते वायु सेना अधिकारी थे, जिन्हें ‘फाइव स्टार रैंक’ दिया गया था। उन्हें 44 साल की उम्र में ही भारतीय वायु सेना का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई थी, जिसे उन्होंने शानदार तरीके से निभाया। वर्ष 1965 की लड़ाई में जब भारतीय वायु सेना अग्रिम मोर्चे पर थी, तब वह उसके प्रमुख थे।

अलग-अलग तरह के 60 से भी ज्यादा विमान उड़ाने वाले सिंह ने भारतीय वायु सेना को दुनिया की सबसे शक्तिशाली वायु सेनाओं में से एक बनाने और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।

अर्जन सिंह बहुत कम बोलने वाले शख्स के तौर पर पहचाने जाने जाते थे। वह न केवल निडर लड़ाकू पायलट थे, बल्कि उनको हवाई शक्ति के बारे में गहरा ज्ञान था, जिसका वह हवाई अभियानों में व्यापक रूप से इस्तेमाल करते थे। उन्हें 1965 में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।