शादी

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की पीठ की सुनवाई जारी है। सुनवाई के दौरान जस्टिस नरीमन का कहना है कि 3 महीने के अंतराल में दिए गए तलाक पर विचार नहीं होगा। एक साथ तीन तलाक के मसले पर ही सुनवाई होगी।

सुनवाई में कांग्रेस नेता और वकील सलमान खुर्शीद भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि अगर सुलह की कोशिश नहीं हुई हो तो तलाक वैध नहीं माना जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की समीक्षा के लिए कहा है और जरूरत पड़ी तो निकाह हलाला पर सुनवाई की जाएगी ये भी कोर्ट का कहना है।

सुप्रीम कोर्ट ने तीन सवाल रखे:
(1) तलाक-ए बिद्दत यानी एक बार में तीन तलाक और निकाह हलाला धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं?
(2) क्या इन दोनों मुद्दों को महिला के मौलिक अधिकारों से जोड़ा जा सकता है या नहीं?
(3) क्या कोर्ट इसे मौलिक अधिकार करार देकर कोई आदेश लागू करा सकता है या नहीं?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हमे लगता है कि तीन तलाक धर्म से जुड़ा मुद्दा है तो हम इसमें दखल नहीं देंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में कहा था कि कोर्ट 11 मई को सबसे पहले उन सवालों को तय करेगा जिन मुद्दों पर इस मामले की सुनवाई होनी है। कोर्ट ने तमाम पक्षकारों से राय भी मांगी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह से मुद्दे पर सुनवाई करेगा।

बता दें कि उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर एकसाथ तीन तलाक कहने और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता के साथ ही मुस्लिमों की बहुविवाह प्रथा को भी चुनौती दी थी।

शायरा बानो ने डिसलूशन ऑफ मुस्लिम मैरिजेज ऐक्ट को भी यह कहते हुए चुनौती दी कि मुस्लिम महिलाओं को द्वि-विवाह (दो शादियों) से बचाने में यह विफल रहा है। शायरा ने अपनी याचिका में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव के मुद्दे, एकतरफा तलाक और संविधान में गारंटी के बावजूद पहले विवाह के रहते हुए मुस्लिम पति द्वारा दूसरा विवाह करने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से विचार करने को कहा है। तब से यह मामला शुरू हुआ है।

जेएस खेहर करेंगे बेंच की अध्यक्षता में हर धर्म के जज
इसकी अध्यक्षता खुद चीफ जस्टिस जे एस खेहर करेंगे। बेंच गर्मी की छुट्टी में विशेष रूप से इस सुनवाई के लिए बैठ रही है। इस बेंच में अलग-अलग धर्मों से जुड़े जजों को रखा गया है। सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुस्लिम जज इस संविधान पीठ का हिस्सा हैं।

मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ से कराने का फैसला लिया है।

तीन प्रावधानों पर होनी है सुनवाई
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक, मर्दों को तीन बार तलाक बोलकर शादी तोड़ने का अधिकार है। पर्सनल लॉ के तीन प्रावधानों तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक, निकाह हलाला और मर्दों को चार शादी की इजाज़त पर सुनवाई होनी है। इसमें से बड़ा मामला है तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक का है।

तलाक के बाद अगर पति पत्नी को लगता है कि उनसे गलती हुई और वो दोबारा शादी करना चाहते हैं तो उसकी क्या व्यवस्था हो ?
अभी मुस्लिम महिलाएं ऐसी स्थिति में सीधे दोबारा निकाह नहीं कर सकतीं, उन्हें पहले किसी और मर्द से शादी करनी होती है। संबंध भी बनाने होते हैं, फिर नए पति से तलाक लेकर पहले पति से शादी की जा सकती है।

चार शादी की इजाज़त पर भी सुनवाई
मुस्लिम मर्दों को एक साथ चार पत्नियों को रखने की इजाज़त भी कोर्ट की समीक्षा के दायरे में है। हालांकि, कुरान में मर्दों को एक पत्नी के रहते दूसरी शादी की इजाज़त दी गई है, लेकिन इसके लिए कई शर्तें लगाई गई हैं। लेकिन इन शर्तों का पालन नहीं होता।