Karnataka, Congress, JDS, BJP, narendra modi

नई दिल्ली, कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस द्वारा बीजेपी को सरकार बनाने से रोकना और बाद में उपचुनाव में संयुक्त विपक्ष का यू पी की किरैना सीट बीजेपी से छीनना। इन सफलताओं ने विपक्ष की जीत खासकर बीजेपी को रोकने के फार्मूले का सूत्रपात किया है। विपक्ष को अब एकता में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने का मार्ग दिख रहा है। यह एकता एक होगी या नहीं , होगी तो कब और कैसे इस पर अभी कई किन्तु-परन्तु भी हैं।लेकिन बीजेपी ने शायद इस खतरे को भांप लिया है। इसलिए मोदी शाह की जोड़ी ने 2019 के मिशन रिपीट को लेकर बिसात बिछानी शुरू कर दी है।

अमित शाह एनडीए के नाराज घटकों को मनाने निकल पड़े हैं। इस सिलसिले में आज उनकी उद्धव ठाकरे से अहम मुलाकात है। उधर पंजाब में अकाली दल के सुर भांपकर केंद्र सरकार ने तुरंत गुरूद्वारे में लंगरों पर जीएसटी समाप्त कर दिया है। अकाली नेताओं ने लंगर पर जीएसटी वापस नहीं लिए जाने की सूरत में बीजेपी से गठबंधन तोड़ने तक के ब्यान देने शुरू कर दिए थे। ऐसे में जीएसटी समाप्त करके अकाली दल को शांत किया गया है। अन्य सहयोगियों के साथ भी बातचीत के जरिये विश्वास बनाये रखने और बढ़ाने की मुहिम जारी है।

मास्टर स्ट्रोक की फिराक में मोदी
लेकिन इसके अतिरिक्त बीजेपी एक और मास्टर स्ट्रोक खेलने की तयारी में है। दीन दयाल मार्ग और लोक कल्याण मार्ग की खबर रखने वाले बताते हैं कि बीजेपी 2019 में लोकसभा के साथ साथ विधानसभा चुनाव भी करवाने की जुगत में है। कम से कम दस राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ कराये जा सकते हैं. संसद के सामने पहले ही सभी चुनाव एकसाथ कराये जाने का सुझाव रखा जा चुका है। लेकिन मोदी और उनके रणनीतिकार इस ख्याल को अमलीजामा पहनाने के लिए भीतर ही भीतर शिद्द्त के साथ जुटे हुए हैं। सूत्रों की मानें तो चुनाव आयोग को ऐसी तयारी करने को कहा जा चुका है। हालांकि यह इतना आसान नहीं होगा।

कहां कहां हैं नज़रें ?
फिलवक्त उड़ीसा, आंध्र और तेलंगाना ऐसे राज्य हैं जहां विधानसभा चुनाव वैसे भी लोकसभा के साथ होने हैं। लेकिन इसी साल अपना कार्यकाल समाप्त करने वाली मिजोरम , मध्य प्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभाओं के चुनाव भी बीजेपी लोकसभा के साथ ही कराना चाहती है। मिजोरम को छोड़कर शेष तीनों राज्यों में बीजेपी की ही सरकारें हैं। इसके लिए पार्टी का थिंक टैंक बहुस्तरीय रणनीति पर काम कर रहा है। चर्चा है कि बीजेपी शासित तीनों राज्यों में विधानसभाएं समय से पहले भंग करवाई जा सकती हैं। चूंकि खुद सरकारें विधानसभा भंग करने की सिफारिश करेंगी लिहाज़ा मामला संसद में नहीं पहुंचेगा। ऐसी कोशिश रहेगी कि इन विधानसभाओं को चार पांच महीने तक भंग रखा जाये और मुख्यमंत्री कार्यकारी तौर पर सत्ता संभाले रहें. इससे टाइम गेन हो जायेगा। यदि कोई कानूनी पेंच फंसा भी तो राष्ट्रपति शासन का विकल्प भी बीजेपी के लिए सेफ गेम है।

मोदी-शाह मण्डली के एक ख़ास सदस्य ने पंजाब केसरी को बताया कि पार्टी महसूस करती है कि ऐसा करने से इन राज्यों में बीजेपी को केंद्र में फिर से मोदी के नारे का भी लाभ मिलेगा। यानी अगर कहीं कोई कोर कसर है तो मोदी के नाम पर केंद्र के साथ साथ राज्यों में भी सरकारें बनाने का प्रयास होगा। बीजेपी ऐसा करके हालिया चुनावों की हार से कार्यकर्ताओं के डगमगाए मनोबल को भी संभालने की जुगत में है। दूसरे शब्दों में उसे डर है किअगर लोकसभा से ऐन पहले एमपी , राजस्थान छत्तीसगढ़ में झटका लगा तो मामला संभालना मुश्किल हो जायेगा और उसका लोकसभा चुनाव में नुक्सान उठाना पड़ेगा। मोदी-शाह की टीम यह रिस्क नहीं लेना चाहती लिहाज़ा विधानसभा चुनाव भी लोकसभा के साथ कराये जाने का जुगाड़ लगाया जाना है।

क्या होगा हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र का ?
यही नहीं झारखण्ड , हरियाणा और महाराष्ट्र में भी विधानसभाओं का कार्यकाल सितंबर 2019 में समाप्त हो रहा है। इसलिए कोई बड़ी बात नहीं की यहां भी इसी फार्मूले के तहत विधानसभा भंग करके चार माह पहले चुनाव करा लिए जाए। दिलचस्प ढंग से यह तो केंद्र सरकार और खासकर पी एम् मोदी प्रचारित कर ही चुके हैं कि एक साथ चुनाव होने से देश का लाभ होगा। बार बार चुनाव के खर्च से बचा जाएगा। यानी जनता के जेहन में भ्र्ष्टाचार, महंगाई रोकने के फार्मूले के रूप में इसे स्थापित किया जा चुका है। संसद में भी चर्चा छेड़ी जा चुकी है।
PunjabKesari
ऐसे में अगर विपक्षी दल भी इस ‘पवित्र फार्मूले ‘ में फंस गया तो बीजेपी उसमे खुद का लाभ देख रही है। इनमे से अधिकांश राज्यों में बीजेपी का शासन है ऐसे में उसे पूरी उम्मीद है की मोदी नाम की पूंछ पकड़ कर राज्यों की सरकारें भी चुनावी वैतरणी से पार पा जाएंगी। ऐसा होगा या नहीं यह तो वक्त बताएगा लेकिन निश्चित तौर से यह फार्मूला गज़ब का है। इसकी भावना जैसा की ऊपर बताया जा चुका है , देश को अतिरिक्त खर्च से बचाने की है, लिहाज़ा ज्यादा शोर संभव नहीं दीखता। और इसके मूल में बीजेपी की खुद को बचाने की कोशिश है। हर्ज़ क्या है ? बशर्ते विपक्ष को हर्ज़ न हो