अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) ने ऐलान किया है कि उसने मंगल ग्रह (Mars) से चट्टानों के  नमूने जमा कर पृथ्वी (Earth) पर लाने की तैयारी शुरू कर दी है. ये नमूने हाल ही में नासा के पर्सिवियरेंस रोवर ने जमा करना शुरू किए हैं. नासा के इस रोवर ने पिछले महीने की एक तारीख से चट्टानों में छेद कर नमूनों को जमा करने की कवायद शुरु की थी. नासा ने पिछले साल जुलाई में पर्सिवियरेंस को मंगल के प्रक्षेपित किया था जो इस साल फरवरी में मंगल की सतह पर उतरा था. अब इन नमूनों को नासा यूरोपीय स्पेस एजेंसी की मदद से पृथ्वी पर लाएगा.

पहली बार होगा ऐसा
यह पहली बार होगा जब किसी दूसरे ग्रह से पृथ्वी पर चट्टानों के नमूने लाए जाएंगे. इन नमूनों का पृथ्वी पर लाना नासा के महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक माना जाता है जिसमें बहुत से अंतरिक्ष अभियान सहित प्रक्षेपण और अंतरिक्षयान शामिल हैं और जिसमें कई देशों का सहयोग शामिल है.

तीन खास चरणों का अभियान
फिलहाल नासा का यह रोवर अगले कुछ सालों तक और जब तक नमूने पृथ्वी पर लाने वाले यान नहीं पहुंच जाते, नमूने जमा करता रहेगा. इस अभियान के तीन प्रमुख चरण हैं जिसमें नमूने जमा करना केवल पहला चरण है. दूसरे चरण में नासा का यान मंगल पर पहुंचेगा और नमूने लेकर उन्हें मंगल ग्रह से बाहर निकालने का काम करेगा. जिसके बाद वह उन नमूनों को तीसरे चरण में उस यान को देगा जो उन्हें पृथ्वी पर लाने का काम करेगा.

पहला चरण ही हुआ है सफल
पहले दो चरण का काम नासा की जिम्मेदारी है और अंतिम चरण का काम ईएसए के अभियान के जरिए पूरा होगा. इस पूरे अभियान के दूसरे और तीसरे चरण के हिस्से डिजाइन और तकनीकी विकास का चरण ही चल रहा है. नासा के मुताबिक नमूने लेने के लिए जाने वाला रॉकेट तैयार हो रहा है और यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) सहित कई निकायों की इसमें सहायता ली जा रही है.

खास कैपसूल विकसित कर रहा है नासा
इस अभियान में ईएसए का सैम्पल फैच रोवर भी मंगल ग्रह पर भेजा जाएगा. इसका प्रक्षेपण इस दशक उत्तरार्ध में पृथ्वी से प्रक्षेपित किया जाएगा. इस रोवर का काम नमूनों का लैंडर तक लाना होगा जो नासा के जेपीएल में विकसित किया जा रहा है. लैंडर की रोबोटिक भुजा रॉकेट के शीर्ष पर पैक करेगी, जिसे नासा का हंट्सविले, अल्बामा का मार्शल स्पेस फ्लाइट सेंटर डिजाइन कर रहा है.

फिर ऑर्बिटर जाएंगे नमूने
इसके अलावा एक नमूने रॉकेट में जमा हो जाएंगे,  वह सैम्पल कैपसूल मंगल की कक्षा में मौजूद ऑर्बिटर कि ओर भेज दिया जाएगा. इसके बाद वह ऑर्बिटर पृथ्वी की  ओर लाने का काम करेगा. इसके लिए विशेषज्ञों का यह सुनिश्चित करना होगा कि रॉकेट का प्रक्षेप पथ, मंगल की कक्षा में मौजूद यान के कक्षापथ से मेल खाए जिससे कैपसूल ऑर्बिटर में स्थानांतरित किया जा सके.

एक काम यह भी
यह योजना तो तैयार है, लेकिन लाखों किलोमीटर दूर से नमूने लाना आसान काम नहीं है. नासा का कहना है कि एक प्रमुख कार्य नमूने के कंटेनर्स को सील करके स्टेरेलाइज करना भी है. लेकिन इसके साथ यह भी सुनिश्चित करना है कि इनके रासायनिक गुणओं में किसी तरह का बदलाव ना आने पाए.

नासा के ही गोडार्ड सिस्टम इंजीनियर ब्रेंडन फीहन का कहना है कि फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती नमूनों को मंगल पर सबसे गर्म तापमान से बचाते हुए ठंडा रखने की है. इस अभियान का विरोध करने वालों की भी कमी नहीं हैं. कई बार आशंका जताई जा चुकी है कि मंगल से ऐसे सूक्ष्म जीव भी पृथ्वी पर आ सकते हैं जो वहां पर जीवन के नष्ट होने का कारण हो सकते हैं. या फिर वे पृथ्वी के लिए ही खतरनाक हो सकते हैं भले ही मंगल का इतिहास कुछ भी रहा हो. लेकिन अभी तक इस तरह आशंका केवल कल्पना ही हैं.