stresss

हम ऐसे दौर में जी रहे हैं, जिसमें स्ट्रेस जिंदगी का एक अंग बन गया है। स्ट्रेस हमारी मेंटल हेल्थ पर बहुत असर डाल सकता है, जो बेचैनी और डिप्रेशन का कारण बनता है। स्ट्रेस की वजह से लोग ऐसी चीजें खाना ज्यादा पसंद करने लगते हैं, जिनमें ट्रांसफैट, नमक और चीनी की अत्यधिक मात्रा होती है। इन चीजों से मोटापा, दिल के रोग, हाईपरटेंशन और डायबिटीज जैसी बीमारियां होने की आशंका रहती है। स्ट्रेस व्यक्ति को तंबाकू, शराब व अन्य नशों के लिए भी प्रेरित करता है और नशे का आदी बना देता है।स्ट्रेस आज जीवनशैली से जुड़ी कई बीमारियों का कारण बन चुका है, इसलिए स्ट्रेस का प्रबंधन अब बेहद जरूरी हो गया है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल कहते हैं, “जब हमारा शरीर या दिमाग किसी जानी-पहचानी स्थिति के प्रति हमारी समझ के मुताबिक प्रतिक्रिया देता है, तो उससे स्ट्रेस उत्पन्न होता है। इसलिए स्ट्रेस से बचने के लिए या तो हालात को बदलना होगा या उसके प्रति समझ को या फिर शरीर को योग साधना से इस तरह ढालना होगा कि स्ट्रेस का आपके शरीर पर असर न पड़े।”

उन्होंने कहा,“हर स्थिति के दो पहलू होते हैं। समझ बदलने का अर्थ है कि किसी हालात को दूसरे नजरिए से देखना। यह बिल्कुल पानी के आधे भरे हुए गिलास को देखने की तरह है, उसे आधा भरा या आधा खाली भी माना जा सकता है। हो सकता है, हर हालत को बदलना संभव न हो। जैसे यदि आपकी नौकरी बेहद स्ट्रेसपूर्ण है, मगर नौकरी छोड़ना हमेशा संभव नहीं होता।”

आईएमए अध्यक्ष का कहना है,“हालात के बारे में दूसरे पहलू से सोचने को एलोपैथिक भाषा में कॉजिनिटिव बेहेवियरल थैरेपी कहा जाता है, यह शब्द अयुर्वेद से लिए गए हैं। भगवत गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को इस कॉजिनिटिव बेहेवियरल थेरेपी के बारे में सलाह दी थी। काउंसलिंग के अलावा हम शरीर को इस तरह से ढाल सकते हैं कि स्ट्रेस का हम पर असर ना हो। प्राणायाम, ध्यान और नियमित व्यायाम की कला सीख कर हम ऐसा कर सकते हैं।”

अग्रवाल ने कहा, “शोध में यह बात सामने आई है कि गुस्सा, द्वेष और आक्रामकता दिल के रोगों का नया खतरा बन कर उभर रहा हैं। यहां तक कि गुस्से की हालत को दोबारा याद करने से भी दिल का दौरा भी पड़ सकता है। शोध में यह भी पाया गया है कि यदि डॉक्टर आईसीयू में बेहोश मरीज के सामने नकारात्मक बातें करने की बजाय सकारात्मक बातें करें, तो उसके नतीजे बेहतर निकलते हैं।”

आध्यात्मिक दावा का अभ्यास करने का सबसे बेहतर तरीका है, अपने विचारों, बोलों और क्रियाओं में मौन को लाना। प्राकृति माहौल में शांत मन से केवल सैर करते हुए और प्राकृति की सुंदर आवाजों को सुनते हुए बिताना 20 मिनट के ध्यान के बराबर प्रभावशाली होता है। 20 मिनट के ध्यान से वही मानसिक ऊर्जा प्राप्त होती है, जो सात घंटे की नींद से मिलती हैli