सॉलिसिटर जनरल

सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि CJI और राज्यपाल आरटीआई के तहत आएं। यह पहला मौका है जब सुप्रीम कोर्ट ने (RTI) अधिनियम के अधिकार के दायरे में आने के लिए न्यायपालिका के अधिकारों को उजागर करते हुए पारदर्शिता कानून के भीतर मुख्य न्यायाधीश के पद का समर्थन किया है।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और अमीताव रॉय की पीठ ने कहा कि सभी संवैधानिक अधिकारियों के कार्यालयों को उनके कार्यो में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व लाने के लिए RTI कानून के तहत बनाया जाना चाहिए।

RTI के तहत आएं CJI और राज्यपाल-
अदालत ने कहा भारत के मुख्य न्यायाधीशो और राज्यपाल के कार्यालयों को आरटीआई अधिनियम के दायरे के तहत लाया जाना चाहिए। गवर्नर ऑफिस को पब्लिक अथॉरिटी घोषित करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देती हुई याचिकाओं पर सुनवाई हो रही थी। इस फैसले में जुलाई-अगस्त 2007 के दौरान राजनीतिक हालात को लेकर गवर्नर की ओर से गोवा राजभवन द्वारा प्रेसिडेंट को भेजे गए रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की बात थी।उस वक्त गोवा विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे मनोहर पर्रिकर द्वारा ये जानकारियां RTI के तहत मांगी गई थीं।

सॉलिसिटर जनरल ने दी ये दलील-
केंद्र की तरफ से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल रणजीत कुमार ने दलील दिया। कहा कि cji के कार्यालय से संबंधित एक अन्य मामले संविधान पीठ के समक्ष लंबित था। आगे कहा कि सरकार की अपील इन मामलों के साथ जोड़नी की जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि संवैधानिक अधिकारियों ने कार्यों का निर्वहन किया और उन्हें RTI अधिनियम के तहत आने से छूट दी जानी चाहिए। हालांकि, बेंच ने इस बात से सहमति नहीं जताई है और कहा कि छिपाने के लिए क्या है?
भारत के मुख्य न्यायाधीश के लिए छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है।
बेंच ने पूछा क्यों राज्यपाल और सीजेआई को आरटीआई के तहत नहीं लाया जाना चाहिए?