वाराणसी, 14 सितम्बर 2021

14 सितम्बर को पूरे देश में \’राष्ट्रीय हिंदी दिवस\’ मनाया जाता है. आजादी के बाद देश में हिंदी के उत्थान के लिए 14 सितम्बर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया. लेकिन आजादी से पहले ही भारत में हिंदी को सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए लड़ाई शुरू हो गई थी. महामना मदन मोहन मालवीय ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. सन 1900 में महामना के प्रयासों से ही अंग्रेजी हुकूमतों के शासनकाल में हिंदी न्यायालय की भाषा बनी थी. इसके अलावा हिंदी के उत्थान के लिए 1916 में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के स्थापना के बाद 1920 में महामना ने बीएचयू (BHU) में हिंदी विभाग स्थापना की गई.

बीएचयू में बना ये हिंदी विभाग (Hindi Department) देश का पहला हिंदी विभाग है, जहां हिंदी में पोस्ट ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई होती है. हालांकि इसके पहले 1918 में कोलकता यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग की स्थापना हुई थी. लेकिन वहां सिर्फ ग्रेजुएशन तक कि ही पढ़ाई होती थी. लेकिन बीएचयू में बना ये हिंदी विभाग में पोस्ट ग्रेजुएशन तक कि पढ़ाई शुरू हुई.

बीएचयू के हिंदी विभाग के प्रोफेसर श्री प्रकाश शुक्ला ने बताया कि राजभाषा हिंदी के लिए महामना और बीएचयू ने अहम भूमिका निभाई है. बीएचयू में ही पोस्ट ग्रेजुएशन के कोर्स के लिए देश के पहले हिंदी विभाग की स्थापना हुई थी. जिसके पहले विभागाध्यक्ष के तौर पर लाला भगवानदीन ने कमान संभाली थी,उसके बाद बाबू श्यामसुंदर दास इस विभाग के दूसरे विभागाध्यक्ष बने.

सन 1900 में बना न्यायालय की भाषा
अंग्रेजी हुकूमतों के शासनकाल में न्यायालय के भाषा के तौर पर सन 1900 में हिंदी को जगह दी गई. महामना मदनमोहन मालवीय जी के प्रयासों से ये संभव हुआ. इसके लिए महामना ने 60 हजार लोगों के हस्ताक्षर वाला एक प्रतिवेदन उस समय के गवर्नर जरनल को सौंपा था,जिसके बाद हिंदी को न्यायालय के भाषा के तौर पर शामिल किया गया.