देहरादून, 6 जुलाई 2021

उत्तराखंड की  राजधानी देहरादून समेत प्रदेशभर में बस्तियों के मालिकाना हक का मुद्दा फिर गर्माने को तैयार है। इसकी पहली वजह ये है कि इन्हें ध्वस्तीकरण से बचाने के लिए लाए गए अध्यादेश की समय सीमा सितंबर में समाप्त होने को है।  दूसरी वजह है आगामी विधानसभा चुनाव की आहट। सरकार की ओर से अध्यादेश के तीन साल की अवधि में बस्तियों को लेकर ठोस निर्णय नहीं लेने को विपक्ष जहां मुद्दा बनाने जा रही है, वहीं आखिरी घड़ी में भाजपा भी मुद्दे को भुनाना चाहेगी।दरअसल, जुलाई 2018 में अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई को लेकर हाईकोर्ट ने आदेश जारी किए थे। इस दौरान देहरादून समेत प्रदेशभर में व्यापक स्तर पर अतिक्रमण हटाओ अभियान चला।

इसी मुहिम की जद में मलिन बस्तियां भी आ रहीं थीं। ऐसे में कांग्रेस समेत अन्य विपक्ष दलों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया। इस बीच निकाय चुनाव सिर पर थे। ऐसे में भाजपा भी वोट बैंक पर असर की आशंका को भांप गई। बस्तियों को ध्वस्तीकरण से बचाने के लिए भाजपा सरकार जुलाई में एक अध्यादेश लेकर आई। इसे सितंबर 2018 में आयोजित मानसून सत्र के पहले ही दिन पारित कर दिया गया। इसके बाद हुए नगर निगम के चुनावों में भाजपा को इसका लाभ भी मिला। हालांकि तीन साल के लिए लाए गए इस अध्यादेश के दौरान सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। नियमितीकरण और मालिकाना हक को लेकर स्थिति अब भी स्पष्ट नहीं है। अब सितंबर में अध्यादेश की समय सीमा समाप्ति की ओर है। ऐसे में कांग्रेस फिर से इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेरने की तैयारी में जुट गई है।

582 बस्तियां पूरे राज्य में चिह्नित
प्रदेशभर में चिह्नित मलिन बस्तियों की संख्या 582 के आसपास है। इनमें से 123 देहरादून में हैं। आबादी की बात करें प्रदेशभर में बस्तियों में मकानों की कुल संख्या एक लाख 80 हजार के आसपास है। इनमें आबादी 11 लाख से ज्यादा है। दून में बस्तियों में करीब 40 हजार भवन और करीब छह लाख की आबादी निवासी करती है। हालांकि यह पुराना आंकड़ा है। आंकड़े बढ़ने का अनुमान है।

नगर निगम की कवायद भी परवान नहीं चढ़ी
नगर निगम ने जनवरी 2020 में हुई बोर्ड बैठक में मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर नया अध्यादेश लाने की मांग सरकार से की थी। साथ ही हाउस टैक्स लगाने को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया था, लेकिन कोविड के चलते कैंप नहीं लग पाए। ऐसे में इच्छुक लोग हाउस टैक्स जमा नहीं कर पाए। हालात सामान्य होते ही कैंप लगाकर टैक्स जमा करवाया जाएगा।

मलिन बस्तियों को मालिकाना हक देने की कवायद कांग्रेस की सरकार ने शुरू की थी। बाकायदा बस्तियों को चिह्नित करने के लिए मलिन बस्ती सुधार समिति बनाई गई थी। इसका चेयरमैन मैं स्वयं था। अक्तूबर 2016 में हमने कुछ लोगों को मालिकाना हक देकर नियमितीकरण की शुरुआत भी कर दी थी, लेकिन फिर आचार संहिता के चलते प्रक्रिया रुक गई। भाजपा सरकार तीन साल के लिए अध्यादेश लेकर आई थी। बावजूद उम्मीद लगाए बैठे लोगों को उनका हक नहीं मिल पाया। कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर प्रदेशभर में व्यापक आंदोलन करेगी।
राजकुमार, पूर्व विधायक एवं कांग्रेस अनुसूचित जाति विभाग के प्रदेश अध्यक्ष

भाजपा सरकार पहले भी मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों के हक में थी और आगे भी रहेगी। नगर निगम ने मलिन बस्तियों को लेकर सकारात्मक फैसले लिए हैं। जरूरत पड़ेगी तो जनहित में सरकार नया अध्यादेश लेकर आएगी। -सुनील उनियाल गामा, मेयर देहरादून नगर निगम

सरकार के मलिन बस्तियों पर अध्यादेश तीन वर्ष पूरे होने वाले हैं, जिस पर मलिन बस्तियों पर फिर संकट के बादल छाने लगा है। इन मलिन बस्तियों पर कानून बनाकर सरकार इन्हें रेगुलाइसज करे और इनमें काबिज लोगों को मालिकाना हक दे। इन मलिन बस्तियों में गरीब-मजदूर रहते हैं। यदि मालिकाना हक नहीं देती हैं तो आंदोलन किया जाएगा।