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जर्मनी में आम आदमी को ध्यान में रखते हुए एक अतिमहत्वाकांक्षी योजना पर काम किया जा रहा है. इस प्लान के तहत जर्मनी में पब्लिक ट्रांसपोर्ट फ्री किया जाना है. दरअसल, जर्मनी में इस योजना को इसलिए लागू करने का प्लान बनाया गया है ताकि देश में वायु प्रदूषण को कंट्रोल किया जा सके.

दरअसल, उम्दा कार बनाने वाले जर्मनी ने दुनियाभर को अब इस बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है. कहा ये भी जा रहा है कि इससे प्रदूषण पर कुछ हद तक लगाम लगाई जा सकती है, जो एक अच्छा तरीका है. इससे प्रदुषण में कमी तो आएगी ही साथ ही आमजन को भी सुविधा मिलेगी.

बता दें कि जर्मनी ने ऐसा कदम उठाने का फैसला इसलिए लिया गया है क्योंकि एक बड़े घोटाले में जर्मनी की फेमस कार निर्माता कंपनी वोक्सवैगन का नाम आया था. ये घोटाला वायू प्रदूषण से जुड़ा हुआ था. बता दें कि इस जर्मन कार कंपनी ने अपनी कार से होने वाले पॉल्यूशन को लेकर देश और दुनियाभर को गलत जानकारी मुहैया कराई थी जिसके बाद वोक्सवैगन को अपनी हजारों कारें वापस मंगवानी पड़ी थी. साथ ही दुनियाभर में भारी विरोध का सामना भी कंपनी ने किया था.
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जर्मनी की पर्यावरण मंत्री बारबरा हेंड्रिक्स ने सरकार के दो और मंत्रियों के साथ कहा, “हम पब्लिक ट्रांसपोर्ट फ्री करने की सोच रहे हैं. इससे कारों की संख्या कम हो जाएगी.” इसके लिए इन्होंने यूरोपियन यूनियन के कमिश्नर कार्मेन्यू वेल्ला को एक चिट्ठी भी लिखी है. बारबरा ने अपने बयान में आगे कहा गया कि वायू प्रदूषण से निपटना फिलहाल जर्मनी की सबसे बड़ी प्राथमिकता है.

फिलहाल इस योजना को इस साल के अंत में जर्मनी के पांच बड़े शहरों में टेस्ट किया जाएगा. फ्री ट्रांसपोर्ट टेस्ट के लिए चुने गए शहरों में देश की पुरानी राजधानी बॉन भी शामिल की गई है. कहा ये भी जा रहा है कि देश के लिए इतना बड़ा फैसला लेना काफी मुश्किल होगा क्योंकि जर्मनी में फिलहाल गठबंधन सरकार की सरकार है. इस योजना के तहत पब्लिक ट्रांसपोर्ट में बिना टिकट यात्रा, कम प्रदूषण फैलाने वाली बसों और टैक्सियों को इस्तेमाल में लाना और कार शेयर/पूल करने जैसी अहम बातों को शामिल किया गया हैं.

दरअसल, जर्मनी में ये कदम इसलिए भी उठाए जा रहे हैं क्योंकि बीते 30 जनवरी को स्पेन, फ्रांस और इटली जैसे ईयू के सदस्य देश अपनी वो डेडलाइन पार कर गए थे, जिसके तहत उन्हें नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और फाइन पार्टिकल्स (PM 2.5) से होने वाले पॉल्यूशन को कंट्रोल करना था. ऐसा कर पाने में ये सभी देश असफल रहे हैं.