विश्वविद्यालय

कई बार अस्वीकृत किए जाने और छात्रों तथा शिक्षकों के एक वर्ग द्वारा आपत्ति उठाए जाने के बाद योग में लघु अवधि के पाठ्यक्रम को शुरू करने के जेएनयू के प्रस्ताव को विश्वविद्यालय की फैसला लेने वाली शीर्ष परिषद ने आखिरकार इसको मंजूरी दे दी है।

विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, इस बाबत गुरुवार को अकादमिक परिषद की बैठक में फैसला लिया गया। इस पाठ्यक्रम पर खूब बहस हो चुकी है और अब इसे मंजूरी देते हुए योग दिवस (21 जून) मनाना एक बहुत ही बढ़िया विचार होगा। भारतीय संस्कृति तथा योग पर लघु अवधि के तीन पाठ्यक्रम शुरू करने का विचार सबसे पहले वर्ष 2015 में आया था। संघ जैसे दक्षिणपंथी संगठन भारत की समृद्ध विरासत को बढ़ावा देने तथा सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की खातिर शैक्षणिक संस्थानों में संस्कृति के प्रचार पर जोर दे रहे थे।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से कई बार संपर्क संवाद के बाद जेएनयू ने तीन पाठ्यक्रमों का मसौदा विश्वविद्यालय के विभिन्न स्कूलों तथा विभागों में उनकी राय जानने के लिए भेजा था। हालांकि इस प्रस्ताव को नवंबर 2015 में अकादमिक परिषद ने अस्वीकार कर दिया था। मगर पिछले वर्ष मई में विश्वविद्यालय ने इस पर फिर से विचार करने का सोचा।

पिछले वर्ष अक्टूबर में परिषद ने इसे फिर अस्वीकार कर दिया। फिर योग दर्शन में पाठ्यक्रम को स्वीकृति दे दी गई, मगर भारतीय संस्कृति पर जिन दो पाठ्यक्रमों का प्रस्ताव है, उनके बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है।