अग्रवाल

राजनीति मे इन्सान अपने स्वार्थ के लिये इतना मतलबी बेगैरत धर्म विरोधी हो जायेगा इसकी कल्पना शायद भगवान ने भी न की होगी। कहते हैं कि जिस मनुष्य को अपने देश धर्म पर गर्व नहीं होता है वह मनुष्य निश्चित तौर पर मनुष्य के नाम पर कलंक और पशु के समान होता है। अपने धर्म के प्रति कट्टर होने के बावजूद दूसरे के प्रति कम से कम सम्मान तो होना ही चाहिए।

इस मामले में मुसलमानों का कोई जोड़ नहीं होता है और वह विभिन्न राजनैतिक दलों में रहते हुये भी अपने धर्म के नाम पर एक भाषा बोलते हैं। कोई अपने मजहब पीर पैगम्बरों की बुराई करता जल्दी नहीं मिलेगा। हमारी कौमी एकता एकजुटता दुनिया में एक मिशाल थी और हिन्दू मुस्लिम दोनों एक दूसरे की भावनाओं की कदर करके एक दूसरे की धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करते थे।

भगवान राम की जन्मभूमि के पैरोकार और बाबरी मस्जिद के पैरोकार अयोध्या से एक साथ रिक्शें पर बैठकर फैजाबाद पेशी आते जाते थे।कभी एक दूसरे के देवी देवताओं को गाली नहीं देते थे बल्कि एक दूसरे के रीति रिवाजों धार्मिक व अन्य कार्यक्रमों में साथ साथ रहते थे। इधर राजनीति ने धीरे धीरे अपने कुछ राजनेताओं को बेधर्मी बना दिया है। मुस्लिम समाज में जब कोई मजहब विरोधी हो जाता है तो उसका सिर कलम करने का ऐलान कर दिया जाता है। कुछ लोगों को जान बचाने के लिये देश छोड़ देना पड़ता है। हमारा देश धर्म निरपेक्ष है इसमें सभी धर्मों के लोगों को अपने धर्म का पालन करने और दूसरे धर्म का सम्मान करने की परम्परा रही है।

इधर राजनैतिक स्वार्थपूर्ति के लिये धार्मिक कट्टरता नहीं बल्कि धार्मिक बखेड़े किये जा रहे हैं। राजनीति का स्तर इतना गिरता जा रहा है कि आने वाले दिनों में लोग वोट की लालच में अपने माता पिता बहू बेटी तक को अपमानित करने लगेंगे। कुछ हिन्दू राजनेताओं द्वारा अपने धर्म के देवी देवताओं का अपमान मात्र मुसलमानों की हमदर्दी पाने के लिये किया जा रहा है। यह बात अलग है कि अब मुस्लिम समाज भी जागरूक होने के नाते सारे राजनीतिक ड्रामों को समझने लगा है।

सपा के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री नरेश अग्रवाल द्वारा दो दिन पहले राज्यसभा में जिस तरह से हिन्दुओं की आस्था विश्वास के प्रतीक देवी देवताओं के बारे अभद्र टिप्पणी की उससे उनकी मनोप्रवृति का खुलासा होता है। यहीं कारण है कि उनके ही व्यवसायी वर्ग ने उनके ऊपर ईनाम घोषित कर दिया है और मुकदमा भी दायर कर दिया गया है। नरेश अग्रवाल जी नाम से तो हिन्दू लगते हैं लेकिन उनकी भाषा तो हिन्दुओं जैसी नहीं लगती है। उनकी भाषा न तो हिन्दुओं की लगती है और न मुसलमानों की लगती है।

अग्रवाल साहब की भाषा इन्सानी खाल ओढे भेडिये जैसी है। अगर उनके दिल में देवी देवताओं के प्रति इतनी नफरत थी तो उन्हें अबतक हिन्दू धर्म छोड़ देना चाहिए थे। ऐसे लोग धर्म और समाज के नाम पर कलंक होते हैं। सपा सरकार से बेहतर गाँव खेत खलिहान और शहर का विकास फिलहाल अबतक किसी ने नहीं किया है किन्तु उनकी पार्टी के कुछ नेताओं की बदजुबानी ने उनके सारे किये कराये पर पानी फेर दिया है। नरेश अग्रवाल जी जैसे लोगों को राज्यसभा में जन समस्याओं के निदान के लिये चुनकर भेजा जाता है किसी के देवी देवताओं पीर पैगम्बरों को गाली देने के लिये नहीं।

अग्रवाल जी की इस अभद्र अशोभनीय अराजकता फैलाने वाली टिप्पणी जनता की समस्याओं से नहीं बल्कि उनके दिलों पर सीधे हमला है।क्या वह और उनकी समाजवादी पार्टी देवी देवताओं को गाली देकर प्रगति कर सकती हैं? क्या उन्हें देवी देवताओं को मानने वालों से वोट सपोट नहीं लेना है? अगर कोई राजनैतिक दल या नेता कहे कि हम एक धर्म जाति के सहारे सत्ता तक पहुँच जायेगें तो यह उसकी भूल होगी।

सपा के संस्थापक कट्टर समाजवादी नेता जी मुलायम सिंह यादव खुद हनुमानजी जी भक्त थे और कभी देवी देवताओं की बुराई नहीं की। आजम खाँ ने और चाहे जो कहा हो किन्तु कभी देवी देवताओं को अपमानित नहीं किया। एक राजनेता करूणानिधि भी थे जिन्होंने कांग्रेस सरकार में रहते हुये टिप्पणी की थी कि-” न राम रहे न रवन्ना तुलसी फर्जी लिखिगे पोथन्ना”।

इसके बाद उनका राजनैतिक पतन हो गया।नरेश अग्रवाल जी की टिप्पणी की जितनी निन्दा की जाय उतनी कम है और उनके समाज को चाहिए कि ऐसे व्यक्ति को तनखैय्या घोषित करके समाज से बहिष्कृत कर दे।सपा सुप्रीमों को भी बदजुबान देवी देवता विरोधी पार्टी को क्षति पहुँचाने वाले नेता के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करनी चाहिए।