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नई दिल्ली. महात्मा गांधी की 1948 में हुई हत्या की दोबारा से जांच नहीं होगी। उनकी हत्या नाथूराम गोडसे ने ही की थी। भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल और एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) अमरेंद्र शरण ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में उन्होंने माना कि महात्मा गांधी हत्याकांड में नाथूराम गोडसे के अलावा किसी अन्य के शामिल होने का कोई सबूत नहीं मिला। रिपोर्ट के मुताबिक महात्मा गांधी की हत्या की नए सिरे से जांच करने की जरुरत नहीं है। एमिकस क्यूरी के मुताबिक, महात्मा गांधी हत्याकांड में जिस बुलेट थ्योरी की बात होती है, उसके कोई सबूत नहीं मिले।

क्या है चौथी गोली का मामला

– नाथूराम गोडसे ने तीन गोलियां दागकर महात्मा गांधी की हत्या की थी। बाद में महात्मा गांधी हत्याकांड को लेकर एक एनजीओ ‘अभिनव भारत’ के डायरेक्टर पंकज फडणीस ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर की थी।

– इस पीआईएल में दावा किया गया था कि गांधी पर 3 नहीं बल्कि 4 गोलियां चलाई गई थीं। एक रहस्यमयी शख्स ने चौथी गोली चलाई थी। उस गोली से ही गांधी की हत्या हुई थी। उस पीआईएल में दावा किया गया था कि नाथूराम गोडसे को तो गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन चौथी गोली चलाने वाले को गिरफ्तार नहीं किया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने किया था विचार

– सुप्रीम कोर्ट ने इस पिटीशन को स्वीकार करने से पहले इसकी जांच शुरू की थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एल. नागेश्वर राव की बेंच ने 7 अक्टूबर 2017 को अमरेंद्र शरण को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था।

– शरण को बेंच ने निर्देश दिया था कि वो महात्मा गांधी हत्याकांड से जुड़े दस्तावेजों की जांच करें और बताएं कि क्या कोई रहस्यमयी शख्स वहां मौजूद था जिसने चौथी गोली चलाई थी।

– 8 जनवरी को एमिकस क्यूरी ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी। जिसमें उन्होंने चौथी गोली और उस रहस्यमयी शख्स की भूमिका को खारिज कर दिया।

गोडसे और आप्टे को हुई थी फांसी

– महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 की शाम को दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में गोली मारकर की गई थी। नाथूराम गोडसे नाम के व्यक्ति ने पहले उनके पैर छुए और फिर सामने से उन पर तीन गोलियां दाग दीं। इस हत्या के मुकदमे में नाथूराम गोडसे सहित 8 लोगों को हत्या की साजिश में आरोपी बनाया गया था।

– इन 8 लोगों में से 3 आरोपियों शंकर किस्तैया, दिगम्बर बड़गे, वीर सावरकर को सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया था। शंकर किस्तैया को हाईकोर्ट में अपील करने पर माफ कर दिया गया। वीर सावरकर के खिलाफ कोई सबूत कोर्ट को नहीं मिल पाया था।

– गांधी की हत्या के लगभग एक साल के बाद अदालत ने 10 फरवरी, 1949 को गोडसे और आप्टे को मौत की सजा सुनाई थी। 15 नवंबर, 1949 को अंबाला जेल में फांसी दी गई थी।