अपनी धुएँधार बल्लेबाज़ी से गेंदबाज़ों के पसीने छुड़ा देने वाली मिताली राज आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। बच्चे-बच्चे की जुबान पर मिताली का नाम है। हर माँ-बाप की ख्वाहिश है कि उनकी बेटी बड़ी होकर मिताली की तरह उनका और देश का नाम गर्व से ऊँचा करे। मिताली राज दुनिया में सबसे अधिक रन बनाने वाली महिला क्रिकेटर हैं जिन्होंने दो बार अपनी कप्तानी में भारतीय टीम को विश्व कप के फाइनल तक पहुँचाया। मिताली राज विश्व कप में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाली पहली भारतीय महिला क्रिकेटर हैं।

महिला क्रिकेट टीम में मिताली के अभूतपूर्व योगदान के कारण इन्हें 2003 में अर्जुन अवार्ड से और 2015 में देश के सबसे बड़े सम्मानों में से एक पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

मिताली राज ने अपनी अगुवाई में भारतीय महिला क्रिकेट को विश्व परिदृश्य पर एक अलग पहचान दिलाई। कल तक जिन महिला खिलाड़ियों के नामों से लोग अनजान थे , आज बच्चा-बच्चा उनसे वाकिफ है। मिताली राज ने भारतीय महिला क्रिकेट को फर्श से क्रिकेट जगत के अर्श तक पहुँचाया। जिस देश में महिला और क्रिकेट के मेल के बारे में कोई महिला तो दूर पुरुष भी सपने में भी नहीं सोच सकते थे, ऐसे समाज में मिताली ने देश की महिलाओं को क्रिकेट खेलने का सपना देखने की हिम्मत दी और खेलने का ज़ज़्बा दिया। मिताली ने अपने खेल के दम पर समाज की सोच के पहाड़ को काटकर ऐसा रास्ता बनाया जिस पर चलकर देश की कई महिलाएं क्रिकेट ग्राउंड तक पहुंच रही हैं।

विश्व कप 2017 में भले ही भारत हार गया और मिताली का वर्ल्डकप जीतने का सपना चूर-चूर हो गया पर मिताली ने इस विश्व कप के बाद देश में ऐसा जूनून भर दिया है ,देश की भावी महिला क्रिकेटरों को ये यकीन दिला दिया है कि महिलायें भी क्रिकेट खेल सकती हैं और पुरुषों से बेहतर भी खेल सकती हैं। मिताली राज ने अपने खेल से देश के प्रशंसकों को पुरुष क्रिकेटर के अलावा अब महिला क्रिकेटर की तारीफ़ करने पर मजबूर कर दिया। क्योँकि मिताली का मानना है कि –

”मैं खेल ऐसा खेलूं कि मेरा हर एक मैच मेरी पहचान बन जाए ,इस खेल की मैं खुदा और ये खेल ही मेरा भगवान बन जाए ”

अपनी अनेकों यादगार पारियों से मिताली ने मैदान पर अपने आपको साबित किया। भारतीय महिला क्रिकेट की सरताज -मिताली राज
आइए जानते हैं इस सरताज की फर्श से क्रिकेट जगत के अर्श तक पहुँचने की कहानी… ज़िन्दगी की किताब में एक कहावत है कि -खुद तेरे चाहने से कब क्या होता है ,वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है ”
ये कहावत मिताली राज पर सटीक बैठती है जिसे वो मिला जिसको वो कभी चाहती नहीं थी पर जो मिला अब उसके अलावा अब वो कुछ और नहीं चाहती हैं।

3 दिसंबर 1982 राजस्थान के जोधपुर शहर में एक तमिल परिवार में जन्मी भारतीय महिला क्रिकेट की सरताज मिताली राज का पहला प्यार क्रिकेट नहीं था ,बल्कि डांस था और मिताली को डांस के अलावा कुछ भी नहीं सूझता था। मिताली हमेशा से ही डांस में ही अपना करियर बनाना चाहतीं थीं। इस वजह से मिताली ने लगभग 8 वर्षों तक भरतनाट्यम सीखा और मिताली इस नृत्य कला में निपुण थी। पर मिताली भी आम बच्चों की तरह ही बचपन में थोड़ी सी आलसी भी थी ,सुबह जल्दी उठना ,पढ़ाई में ही फोकस करना उनसे कभी भी नहीं हो पाया। पर मिताली के पिता दोराय राज जो भारतीय वायु सेना में कार्यरत थे ,बेहद अनुशासित व्यक्ति थे और वो मिताली को भी अनुशासन में जीना सिखाना चाहते थे इस लिए उन्होंने मिताली को क्रिकेट की ट्रेनिंग दिलाने का निर्णय लिया। उनके पिता ने सोचा कि उनके इस फैसले से उनकी बेटी की दिनचर्या में सुधार आएगा पर उन्हें उस वक़्त ज़रा सा भी अंदाजा नहीं था कि उनके इस फैसले से देश की महिला क्रिकेट को नया सरताज मिल जायेगा। पिता के फैसले को अनिवार्य मानते हुए मिताली ने क्रिकेट की abcd सीखने की शरुआत अपने भाई मिथुन के साथ keyss girls high school से की थी। इसके बाद कोच ज्योति प्रसाद की सलाह पर मिताली के पिता ने उस वक़्त के सबसे कड़े अनुशासन का पालन करने वाले अनुभवी फॉर्मर क्रिकेटर सम्पत कुमार से अपनी बेटी को क्रिकेट की ट्रेनिंग दिलाने का फैसला किया। सम्पत कुमार उन दिनों के सबसे सख्त कोच माने जाते थे। सम्पत कुमार ने मिताली और बाकी अपने क्रिकेट स्टूडेंट्स को सख्त हिदायत दी थी कि सूरज के निकलने से पहले ही सभी स्टूडेंट्स क्रिकेट ग्राउंड में पहुंच जाने चाहिए क्योँकि सम्पत कुमार कड़े अनुशासन का पालन करने वाले कोच थे और मिताली का तो दूर-दूर तक अनुशासन से कोई लेना-देना नहीं था। सम्पत कुमार स्टूडेंट्स से कड़ी प्रैक्टिस करने पर ज़ोर देते थे और कठिन ट्रेनिंग देते थे। शुरुआत में मिताली बस यही सोचती थी कि उन्हें हर रोज़ वहां जाना पड़ रहा है जहाँ जाना उन्हें बिलकुल पसंद नहीं है पर ऐसा नहीं था कि उन्हें क्रिकेट से नफरत थी, बस डांस से बेहद प्यार था। पर जैसे-जैसे मिताली की ट्रेनिंग आगे बढ़ी उनके लिए वो और भी कठिन हो गयी। मिताली ने एक साक्षात्कार में बताया कि उनके कोच सम्पत कुमार कैच प्रैक्टिस के दौरान गेंद की जगह पत्थर का इस्तेमाल करते थे और तो और एक बार उनकी एक गलती के कारण उन्हें स्टंप से भी मार दिया था। कैच प्रैक्टिस के दौरान मिताली के हाथ नीले पड़ जाते थे पर फिर भी उन्हें हाथ पर कपडा बांध कर प्रैक्टिस सेशन पूरा करना पड़ता था। पर वो कहते हैं ना –
”एक पत्थर चोट खाकर कंकड़ बन जाता है ,तो दूसरा चोट खाकर शंकर बन जाता है ”

कुछ ऐसा ही हुआ मिताली के साथ भी जिन्होंने कड़ी ट्रेनिंग और समर्पण के साथ क्रिकेट पर ही अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया और अपने बचपन के प्यार डांस को त्याग दिया।मिताली के त्याग का परिणाम उन्हें मिला जब उन्हें अंजुम चोपड़ा, अंजू जैन तथा पूर्णिमा राओ जैसे सीनियर क्रिकेटर के साथ रेलवे में खेलने का मौका मिला।
लेकिन मिताली राज के महिला क्रिकेट की सरताज बनने की कहानी शुरू हुई 26 जून 1999 को जब मात्र 17 साल की उम्र में ही इस महिला क्रिकेटर ने अपने पदार्पण से एकदिवसीय मैच में ही B पर ये महज आगाज़ था कारवां और भी था आगे। वनडे के बाद मिताली ने 2001 में टेस्ट क्रिकेट में अपना डेब्यू साउथ अफ्रीका के खिलाफ किया था। मिताली ने 19 साल की उम्र में अपने तीसरे टेस्ट मैच में ही 214 रनों की बेजोड़ पारी खेलकर कोरेन रूटन के सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर के रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया।वर्ष 2005 में ही मिताली राज को भारतीय महिला टीम की कप्तान बनाया गया जिस किरदार को उन्होंने बखूबी निभाया भी और अपने पहले ही विश्व कप में अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए फाइनल तक ले गयी पर इस बार मिताली का साथ किस्मत ने छोड़ दिया और फाइनल से पहले ही मिताली बीमार हो गयीं जिसकी वजह से वो चाह कर भी फाइनल नहीं खेल पायीं और भारत को ऑस्ट्रेलया के हाथों हार कर विश्व कप गंवाना पड़ा।
वर्ल्ड कप की हार के बाद ही देश में मिताली और महिला क्रिकेट टीम की आलोचनाओं का दौर शुरू हो गया पर मिताली ने हार नहीं मानी।

ऐसा नहीं है कि वर्ल्डकप में सिर्फ मिताली को हार ही मिली बल्कि मिताली और महिला क्रिकेट टीम के नज़रिये से उन्हें कुछ सकारात्मक परिणाम भी मिले महिला क्रिकेट के बारे में लोगों की रुचि बढ़ गयी थी।
वनडे और टेस्ट के बाद मिताली ने अपना टी-20 डेब्यू 5 अगस्त 2006 को इंग्लैंड के विरुद्ध किया था। मिताली हमेशा से ही देश में महिला क्रिकेट को भी पुरुष क्रिकेट की समान ही अधिकार और सम्मान दिलाना चाहतीं थीं इसलिए जब 2017 में विश्वकप के दौरान उनसे एक पत्रकार ने पूछा कि आपका फेवरेट पुरुष खिलाड़ी कौन है तो मिताली ने उस पत्रकार को और समाज को आइना दिखाते हुए जवाब दिया कि ”क्या आप कभी पुरुष क्रिकेटर से पूछते हैं कि उनकी फेवरेट महिला खिलाड़ी कौन है ?” शायद उस पत्रकार ,देश और दुनिया के लिए वो सटीक जवाब था।
2005 विश्वकप के बाद 2017 विश्वकप में भी कप्तानी की बागडोर संभाली मिताली राज ने और बेहतर खेल और ज़ज़्बे के दम पर इस बार भी मिताली अपनी टीम को दूसरी बार भी फाइनल तक ले गयीं पर इस बार भी उनका विश्वकप जीतने का सपना महज सपना ही रह गया। पर इस वर्ल्डकप में मिताली दुनिया की सर्वाधिक रन बनाने वाली पहली महिला बनीं और इस वर्ल्डकप में दूसरी सबसे ज़्यादा रन बनाने वाली महिला क्रिकेटर बनीं। मिताली के साथी खिलाड़ी उन्हें ”लेडी तेंदुलकर ”कहकर बुलाते हैं। ये मिताली का समर्पण और बेहतर खेल ही है जिसके चलते वर्ल्ड कप हारने के बाद भी मिताली को आईसीसी की महिला क्रिकेट टीम का कप्तान बनाया गया है। आज हर पिता अपनी बेटी को मिताली राज बनाना चाहता है और भविष्य में यक़ीनन कोई मिताली भारत को वर्ल्डकप भी  दे। देश की इस बेटी पर समूचे देश को गर्व है।