sperm

पुरुष का वीर्य जितना स्वस्थ होता है, उसका चेहरा और व्यक्तित्व उतना ही तेजस्वी होता है। पुरुष जो कुछ भी खाता है, पीता है, करता है या जो कुछ सोचता है उसका तन और मन पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए जो प्रभाव इन पर पड़ता है उसका सीधा रूप से असर वीर्य पर भी होता है।

वीर्य निर्माण की प्रक्रिया
अधिकतर 14 से 16 साल की उम्र में ही पुरुषों के शरीर में वीर्य का निर्माण होना शुरू हो जाता है। इसके बाद इसका निर्माण आजीवन होता रहता है। पुरुष के लिंग के नीचे दो अंडकोष होते हैं और इनमें ही शुक्राणुओं का निर्माण होता है। कई प्रकार के द्रवों का निर्माण सेमिनल वेसिकल्स (शुक्राशय) तथा प्रोस्टेट ग्रंथि में होता है।

पुरुष के शरीर में सेमिनल वेसिकल्स नामक 3 इंच लम्बी दो ग्रंथियां होती हैं जिसमें एक प्रकार का स्राव उत्पन्न होता है। यह स्राव शुक्राणुओं को पोषण देता है और उनकी गति को बढ़ाता है। इसके साथ ही साथ प्रोस्टेट ग्रंथि से भी एक तरह का स्राव उत्पन्न होता है। जब ये सब आपस में मिल जाते हैं तो वीर्य बनता है। लगभग 70 से 80 दिनों में वीर्य में उपस्थित शुक्राणु पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाते हैं।

पुरुष के शरीर में वीर्य निर्माण की प्रक्रिया नियमित रूप से चलती रहती है। वीर्य को रखने के लिए जब अंडकोष में जगह कम पड़ जाती है तो वीर्य छलककर बाहर आ जाता है जिसके कारण से अंडकोष में ताजा वीर्य रखने के लिए दुबारा स्थान बन जाता है। पुराने वीर्य के बाहर छलकने की क्रिया स्वप्नदोष या नाइट डिस्चार्ज कहलाती है। स्वप्नदोष की वजह से पुरुष को किसी प्रकार की मानसिक तथा शारीरिक हानि नहीं होती है।

जब पुरुष का एक बार वीर्य स्खलन होता है तो उस वीर्य के साथ ही लगभग 3 से 4 करोड़ शुक्राणु निकल जाते हैं। यदि आपके वीर्य में मृत, बेहोश या कमजोर शुक्राणुओं की संख्या अधिक है अर्थात जीवित शुक्राणुओं की संख्या कम हो तो आपके वीर्य की क्वालिटी खराब मानी जाएगी।