rana yashwant

10 अक्तूबर 1949 को संविधान सभा की बैठक चल रही थी। इस बैठक में सभा के वरिष्ठ सदस्य और डिप्टी स्पीकर अनंत स्वामी आयंगर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के बारे में अपनी राय रख रहे थे। उनकी बात से गृह मंत्री सरदार पटेल इतने आहत हुए कि उन्होंने कहा-” आयंगर साहब के विचार से ऐसा लगता है कि प्रशासनिक अधिकारी हमारे देश के दुश्मन हैं, हमें जिन लोगों से काम लेना है उनके प्रति हम दुश्मन-सा भाव रखते हैं। हमारा ऐसा बर्ताव देश की सेवा के बजाय कुसेवा होगा। उस बैठक में भारतीय प्रशानिक सेवा और अधिकारियों की सुरक्षा को लेकर जो भाषण सरदार पटेल ने दिया था, उसको नौकरशाही के अधिकारों के लिहाज से मैग्नाकार्टा कहा जा सकता है । यह तब था जब समूची कांग्रेस, यहां तक कि प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु भी नौकरशाही के खिलाफ थे। सरदार पटेल नौकरशाही के पक्ष में चट्टान की तरह खड़ा रहे।उन्होंने कहा – “‘यदि हम सक्षम अखिल भारतीय सेवा चाहते हैं तो, मैं आपको सलाह दूंगा कि सेवा अधिकारियों को मुख्यरूप से अपने विचार व्यक्त करने की आजादी होनी चाहिए। यदि आप प्रधानमंत्री हैं, तो आपका दायित्व बनता है कि आप अपने सचिव या मुख्य सचिव या अपने अधीनस्थों को किसी प्रकार के भय या लालच के बिना अपना मत व्यक्त करने का उचित वातावरण प्रदान करेंगे। किंतु आजकल तो मै इस प्रकार माहौल देख रहा हूं कि कुछेक प्रांत में सेवा अधिकारियों को कहा जाता है, नहीं, आप तो सेवा अधिकारी हैं, आपको हमारे निर्देशों के केवल अनुपालन करना है। इस प्रकार तो संघीय ढांचा रहेगा नहीं, संयुक्त भारत टिकेगा नहीं, आपके पास मुक्त मन से अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता वाली अखिल भारतीय सेवा यदि नहीं है और उन्हें सुरक्षा का भाव भी नहीं है, तो संघीय ढांचा नहीं रहेगा”

सरदार पटेल के उस भाषण को आज ७० साल हो गए। उन्होंने कितनी गहरी और मायने वाली बात कही थी, इसको आज के संदर्भ में भी रखकर समझा जा सकता है। आज भी उनकी बातें उतनी ही प्रासंगिक है। प्रशासनिक अधिकारियों की क्षमता पर सरदार पटेल को पूरा भरोसा था और वे यह मानते थे कि संविधान के अनुसार देश को चलना है तो फिर सरकारों को समर्थ-सक्षम औऱ निर्भीक अधिकारियों से लैस होना पड़ेगा। एक बार जब सरदार की तबीयत खराब थी, गृह सचिव एचवीआर आयंगर ने कुछ सुझावों की फाइल उनके पास भेजी। उन सुझावों पर पटेल के निजी सचिव विद्या शंकर ने पहले टिप्प्णी डाल दी और फिर उसके बारे में सरदार को बता दिया। हामी भी मिल गई। लेकिन टिप्पणियां सुझावों के उलट थीं। आयंगर, पटेल के पास पहुंचे और अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी। उन्होंने अपने सुझावों के पक्ष में मजबूत तर्क भी रखे। सरदार ने अपनी पुरानी टिप्पणी रद्द करते हुए, गृह सचिव के सुझावों को मान लिया। पटेल अधिकारियों की ऐसी आज़ादी और निर्भीकता के पक्षधर थे।आज देश में सिविल सेवा का जो ढांचा है, उसको खड़ा और मजबूत करने में सरदार की भूमिका बहुत बड़ी रही है।

लेकिन एक सच यह भी है कि प्रशासनिक अधिकारियों से जिस तरह की सेवा, समर्पण और ईमानदारी की अपेक्षा देश को रही, वो पूरी नहीं हुई । जनता से उनका जुड़ाव और व्यवस्था को जनोपकारी बनाने को लेकर प्रतिबद्दता- दोनों में कमी आज भी महसूस की जाती है। इसका सबसे बड़ा कारण देश के राजनीतिक तंत्र के भ्रष्ट और अराजक होने को माना जाता है ।

वैसे सच यह भी है कि भारत अगर उत्तरोत्तर संपन्न, सफल, सबल और सक्षम राष्ट्र बनता गया तो इसमें सबसे महत्वपूर्ण योगदान प्रशासनिक अधिकारियों का रहा है। उनकी योग्यता, लगन, समर्पण और ईमानदारी के कारण ही ना सिर्फ समाज में व्यवस्था बहाल रहती है, बल्कि कुशल नीति-निर्माण से लेकर उनके सफल कार्यान्वयन तक का काम हो पाता है।

देश के हजारों आईएएस अधिकारियों के बीच सर्वश्रेष्ठ अधिकारियों के चुनना फेम इंडिया के लिए स्वयं में बेहद चुनौतीपूर्ण काम रहा होगा । देश-निर्माण में लगे वैसे योग्य औऱ ईमानदार अधिकारियों की बड़ी संख्या है, जो श्रेष्ठ आईएएस होने की हर शर्त पूरा करते हैं और यह देश के लिए गर्व की बात है। लेकिन, हर चयन-विधि की तरह इसकी भी एक प्रक्रिया रही । इसी प्रक्रिया से जो नाम आए, उन्हें पत्रिका में जगह दी जा रही है ,सभी को शुभकामनाएं।

लेखक – राणा यशवंत देश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार हैं ,
(फाउंडर – द फ्रंट ” जो बोलेंगे वो बदलेगा” )
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