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जेल का दरवाज़ा खुला…  हाथों में एक बैग लिए राजेश तलवार जिनकी दाढ़ी बड़ी हुई थी निकले । उनके पीछे नूपुर तलवार बाहर आई । दोनों के चेहरे पर कोई भी एक्सप्रेशन नहीं था । सपाट , सफ़ेद हो चुका चेहरा खुद ही कह रहा था बेटी आरुषि को खोने के बाद उनके पास कुछ भी शेष नहीं सिवाय जीने के वो भी इस तरह । बिना मकसद के …

4 साल जेल में रहने के बाद वो भी अपनी ही लाड़ली के क़त्ल के इल्ज़ाम में । कितनी फांसी की सजा से दर्द कम क्या होगा कोई उनसे ईमानदार हो पूछे तो । इस रिहाई से किसे फायदा है । इन दोनों को तो यक़ीनन नहीं जो बाहर ओर भी सवालों के तीरों से रोज़ छेदे जायेंगे । चैनल जरूर  कुछ दिनों तक ब्रेकिंग कर कर के अपनी टीआरपी को बढ़ाएंगे । उन्हें पता है इसका किसी को कोई फायदा नहीं । कोई ईमानदार हो ये सवाल नहीं उठाएगा अब की इन बेकसूर माता पिता का दोष क्या है जो इन्हे उनकी ही बेटी के क़त्ल के इल्ज़ाम में सजा होती है । अपमानित किया जाता है । फिर उन्हें माननीय कोर्ट निर्दोष करार करके रिहा कर देती है ।

अब किसे सजा मिलना चाहिए ?

उन्हें जिन्होंने गलत दिशा में जांच की या उन्हें जिन्होंने सबूतों को देखा ही नहीं सही मायनो में । केवल दबाव के लिए कुछ भी फैसला दे दिया ओर नाप दिया मासूम माँ बाप को जो पहले ही अपनी बेटी की हत्या / मौत से दुखी थे , बेबस ,लाचार होकर चले गए उस जुल्म के लिए जो उन्होंने किया भी नहीं । क्या कहे हम हमारे इस महान सिस्टम को । किसे दोष दें कि जांच ऐसे क्यों की ? कौन अब इस का दोषी है जिसने 4 साल दो निर्दोष लोगों को जेल में अपनी ही लाड़ली कि हत्या के जुल्म में सजा कटवा दी ।
क्या उन सभी न्यूज़ चैनल / माध्यमों पर कोई दोष नहीं जिन्होंने बिना तथ्यों को जाने उन्हें दोषी दिखा दिखा कर वैसे ही मार दिया था ।

जेल से निकलने के बाद उस जेल के जेलर ने कहा उन्होंने ( राजेश ,नूपुर तलवार ) कल रात तक भी बीमार मरीजों को देखा था । वो लगातार कैदियों के स्वास्थ के लिए अपनी नियमित सेवाएं देते थे । उनसे प्यार करते थे ,उनका ध्यान रखते थे । कैदियों से क्या सबसे सदव्यवहार करते थे ।

उन्होंने इन 4 वर्षो में 99,000/- रुपये कमाए थे अपनी मेहनत से , वो भी जेल में कैदियों के वेलफेयर के लिए दे गए । उनके पास जो भी सामान ,किताबें थीं वो भी उन्होंने जेल को दे दी इस वादे के साथ कि वो जेल में सेवाएं देते रहेंगे अगर सरकार उन्हें ऐसा करने देगी तो ।
ये जान कर लगा कि कैसे ये मासूम दोषी हो सकते हैं, अपनी ही बेटी के हत्यारे हो सकते हैं? संभव ही नहीं लगता कभी ।अब तो ये सुन कर …

आज वो जेल से सीधे नूपुर तलवार की माताजी के घर गए । शायद अब उनके पास उस घर में वापिस जाने की हिम्मत भी नहीं जहाँ उनकी लाड़ली की हत्या ,मौत हुई । जिसकी वजह उनकी सजा बनी । पता नहीं आपको या किसी को भी इन दृश्यों में क्या खबर दिखती है । या कोई मज़ा चटपटी न्यूज़ का । मुझे तो दोनों के चेहरों पर जीने का कोई भी लक्षण नहीं मिला । न कोई खून का आवागमन जिसे कहा जाए वो इस रिहाई से खुश है । या जीने को तत्पर भी ।

मुझे तो उनकी आँखों में असीम पीड़ा दिखी जिसे वो किससे कहे ,कहे भी तो उसका सार क्या ? फायदा क्या ? हां शायद अपनी बेटी की तस्वीर पर उन्हें पुष्प चढ़ा कर ये जरूर सुकून होगा की वो उसे कह सके देख बेटा हमें अदालत ने तेरे ही इल्ज़ाम से बरी कर दिया ।हम दुनिया के पहले माता पिता हैं जो इस रिहाई से खुश भी नहीं । क्योकि बेटी तो है नहीं अब हमारे पास तो फिर जीकर इस तरह भी फायदा क्या ? मज़ा क्या ? सुकून क्या ??

मुझसे भी अब इससे आगे नहीं देखा गया ,मैंने बिग बॉस लगा दिया ……क्योकि ये टीस इतनी भी आसान नहीं …
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laxman(लक्ष्मण पार्वती पटेल (Correspondent, PTI) की फेसबुक वाल से साभार)