मंत्र

आज हम आपको पुराणों में बताए गए कुछ ऐसे मंत्रो को बता रहे है जिनका पाठ धन की बाधा दूर करने में कारगर माना गया है। बता दें कि ये मंत्र ऐसे हैं जिन्हें आप सुबह या रात में सोने के पहले कभी भी पवित्रता के साथ जपें तो लाभ आप खुद महसूस करने लगेंगे।

विष्णु पुराण में सागर मंथन के बाद देवी लक्ष्मी के प्रकट होने पर देवराज इंद्र देवताओं के साथ देवी लक्ष्मी की स्तुति करते हैं। इंद्र द्वारा की गयी लक्ष्मी स्तुति का पाठ बहुत ही कल्याणकारी माना गया है। विष्णु पुराण के अनुसार देवी लक्ष्मी कहती हैं कि जो भी नियमित इस स्तोत्र का पाठ करेगा उसके घर में सुख, समृद्धि और लक्ष्मी का वास रहेगा।

स्तोत्र के कुछ अंश देखिएः-
त्वं सिद्धिस्त्वं स्वधा स्वाहा सुधा त्वं लोकपावनी। सन्ध्या रात्रिः प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती॥ ४॥ यज्ञविद्या महाविद्या गुह्यविद्या च शोभने । आत्मविद्या च देवि त्वं विमुक्तिफलदायिनी॥ ५॥
आन्वीक्षिकी त्रयीवार्ता दण्डनीतिस्त्वमेव च। सौम्यासौम्यैर्जगद्रूपैस्त्वयैतद्देवि पूरितम ॥ ६॥ का त्वन्या त्वमृते देवि सर्वयज्ञमयं वपुः। अध्यास्ते देवदेवस्य योगचिन्त्यं गदाभृतः॥

भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले शंकराचार्य ने एक गरीब व्यक्ति के कल्याण के लिए कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी। ऐसी मान्यता है कि नियमित कनकधारा स्तोत्र के पाठ से देवी लक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त होती है।

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम। अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।
मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि। माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।धन संबंधी परेशानी दूर करने में देवी लक्ष्मी का प्रिय श्रीसूक्त का

पाठ भी बहुत फायदेमंद माना गया है। इसके कुछ अंश देखिए- ॐ हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्। चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।। तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।। अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्। श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।। इस सूक्त का उल्लेख ऋग्वेद में किया गया है।

धन की देवी लक्ष्मी की प्रसन्नता और उनकी कृपा पाने के लिए लक्ष्मी सूक्त का पाठ भी कर सकते हैं।
सूक्त इस प्रकार है-ॐ पद्मानने पद्मिनि पद्मपत्रे पद्ममप्रिये पदमदलायताक्षि । विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूलेत्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ।। 1।। पद्मानने पद्मऊरु पद्माक्षी पदमसंभवे । तन्मे भजसि पद्माक्षी येन सौख्यंलभाम्यहम् ।।2 ।। अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने । धनं मे जुषतां देवीसर्वकामांश्चदेहि मे ।। 3।। पुत्रं पौत्रं धनं धान्यं हस्तिअश्वादि गवेरथम् । प्रजानां भवसिमाता आयुष्मन्तं करोतुमे ।।4।।