टिफिन

अहमदाबाद : अहमदाबाद के कई स्कूलों में बच्चो के टिफिन पर लादे गए तुगलकी फरमान। इन दिनों चर्चा का विषय बने हुए हैं। अहमदाबाद के ज्यादातर स्कूलों में अभिभावकों को साफ तौर पर हिदायत दी गयी है कि वो बच्चो को टिफिन में सिर्फ शाकाहारी भोजन ही दें।

यूं तो स्कूलो में बच्चो को अपने अधिकार के लिए लड़ने की प्रेरणा दी जाती है, पाठ पढ़ाए जाते हैं, मौलिक स्वतंत्रता के मन्त्र भी दिए जाते है। एक साथ रहने की भारतीयता की शपथ दिलाई जाती है, मगर इन्ही स्कूलों ने बच्चो के टिफिन को लेकर भेदभाव की नीति अपना रखी है। ज्यादातर स्कूलों ने तानशाही रव्वैया अपना रखा है।

सख्त पाबन्दी-

हिन्दू बाहुल्य इलाको में स्थित तकरीबन सभी स्कूलों में बच्चो के टिफिन में मांसाहारी भोजन या नास्ता लाने पर सख्त पाबन्दी लगाई है। तकरीबन सभी स्कूलों में मौखिक तौर पर ये फरमान जारी कर सभी अभिभावकों को साफ तौर पर कहा गया है कि वो बच्चो को सिर्फ शाकाहारी भोजन वाला ही टिफिन दें।

टिफिन को लेकर कोई भी सरकारी अधिसूचना या पाबन्दी न होने के बावजूद ऐसे तुगलकी फरमान को ज्यादातर स्कूल ने मौखिक हिदायत देकर ही अमलीजामा पहनाया है। जिसके पीछे इनकी दलील है कि स्कूल में बच्चे ज्यादातर समूह में बैठकर खाते है और हिन्दू छात्र ज्यादा होने के चलते मांसाहारी नाश्ता दूसरे बच्चों को असमंजस की स्थिति पैदा कर देता है और फिर वो घर जाकर मां-बाप से शिकायत कर देते हैं।

निजी फैसला

कौन क्या खायेगा, ये उसका निजी फैसला है और मौलिक स्वतंत्रता भी मगर स्कूल की सख्ती के चलते हिन्दू बाहुल्य स्कूल में पढ़ने वाले मुस्लिम बच्चे भी शाकाहरी भोजन या नाश्ता खाने को मजबूर हैं, हांलाकि ज्यादातर अभिभवाक को इस बात से बहुत ज्यादा आपत्ति नहीं है, स्कूल प्रशाशन की मानें तो अभिभवाक शाकाहारी भोजन के लिए बच्चो को प्रेरित करते हैं।

कई स्कूल ऐसे भी हैं, जो खुद ही रिसेस में नाश्ता उपलब्ध कराती हैं, वो भी शाकाहारी ही होता है। निर्माण स्कूल, दिल्ली पब्लिक स्कूल, एजी स्कूल, साधना स्कूल, लोटस स्कूल, प्रकाश स्कूल जैसे कई स्कूल सिर्फ शाकाहारी टिफिन ही अलाउ करते हैं। वहीं सेंट ज़ेवियर, एमजीआईएस, कुछ ऐसे भी स्कूल हैं जहां इस तरह का कोई प्रतिबंध नहीं मगर उनकी तादाद बहुत कम है।

वहीं मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले इतिहासकार रिजवान कादरी का मानना है कि गुजरात की संस्कृति और फूड हैबिट के अनुसार इसमें कोई बुराई नहीं है। उनका कहना है कि अपने स्कूल जीवन में वो खुद कभी नॉन वेज टिफिन नहीं ले गए। बहरहाल खानपान पर किसी भी तरह की पाबन्दी मौलिक अधिकारों का हनन है। भले ही अभिभावकों को इस पर ज्यादा ऐतराज न हो मगर टिफिन को लेकर स्कूल का ये तुगलकी रवैया कई लोगो को स्वीकार्य नहीं है।