maa durga

एक तरफ जहाँ देश भर में नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है, लोग माँ दुर्गा की उपासना कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं जो माँ दुर्गा की निंदा करने के लिए किसी भी स्तर तक जाने के लिए तैयार हैं।
ऐसी ही एक पोस्ट आज सोशल मीडिया पर देखने को मिली जिसपर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। ये पोस्ट दयाल सिंह कॉलेज,दिल्ली यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर केदार कुमार मंडल ने की। अपनी पोस्ट में केदार कुमार ने माँ दुर्गा को ‘Sexy Prostitute’ कहा।
मंडल ने अपनी पोस्ट में लिखा, ” Durga is the very much sexy prostitute in the indian mythology.”

Kedar kumar post

केदार कुमार मंडल की प्रोफाइल के अनुसार वो जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए हैं और फिलवक्त डीयू में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर कार्यरत हैं। उनकी प्रोफाइल से ये भी पता चला कि वो अम्बेडकरवाद और फुलेवाद को मानने वाले हैं।

Kedar k post

हिंदुओं की आस्था आहत करने वाले इस पोस्ट पर कुछ मिनटों में ही लोगों का ऐसा आक्रोश फूटा कि केदार कुमार को अपनी पोस्ट डिलीट करनी पड़ी। कुछ लोगों ने इसे घटिया सोच का उदाहरण बताया तो कुछ ने सवाल खड़े किये कि ऐसी मानसिकता के साथ ये छात्रों को क्या शिक्षा देते होंगे।

हम आपको बता दें कि माँ दुर्गा की निंदा का ये देश में कोई पहला मामला नहीं है। देश में एक वर्ग ऐसा भी है जो माँ दुर्गा के हाथों महिषासुर वध की निंदा करता है और महिषासुर शहादत दिवस मनाता है।

सबसे पहले 25 अक्टूबर 2011 को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में महिषासुर शहादत दिवस मनाया गया था। इंडिया बैकवर्ड स्टुडेंट्स फोरम (एआईबीएसफ) से जुड़े छात्रों ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था।साथ ही इसे अन्य दलित-आदिवासी और ओबीसी छात्रों का समर्थन हासिल था।

इसके पीछे आयोजकों का तर्क यह है कि महिषासुर मिथक का संबंध बहुजनों यानी दलित-आदिवासी-ओबीसी समुदाय से रहा है। इसके आयोजक और समर्थक अपनी अस्मिता को महिषासुर से जोड़ते हैं। कुछ लोग महिषासुर को मिथकीय नहीं बल्कि ऐतिहासिक पात्र मानते हैं और उन्हें अपना पूर्वज (जननायक) मानते हैं।

महिषासुर का संबंध प्राचीन जनजाति असुर से भी जोड़ा जाता है, देश में जिनकी आबादी करीब 9,000 बची है। इस जनजाति के लोग देवताओं द्वारा असुरों के संहार को अपने प्रतापी पूर्वजों की सामूहिक हत्याएं मानते हैं।

ये आयोजन दशहरा की दसवीं के ठीक पांच दिन बाद किया जाता है। कहीं इसे ‘महिषासुर शहादत दिवस’ कहा जाता है तो कहीं ‘महिषासुर स्मरण दिवस.’।

वर्ष 2014 में जेएनयू में इसके आयोजन का विरोध करते हुए एबीवीपी ने कार्यक्रम में बाधा पहुंचाई थी और FIR भी दर्ज करायी थी। इन दबावों और एआईबीएसएफ की ओर से मुख्य आयोजनकर्ता के जेएनयू से रिसर्च पूरी कर निकल जाने की वजह से अक्टूबर 2015 में महिषासुर शहादत दिवस जेएनयू में तो नहीं हो सका, लेकिन आयोजकों का दावा है कि यूपी के देवरिया, बिहार के मुजफ्फरपुर, भागलपुर, पश्चिम बंगाल के कोलकाता और पुरुलिया समेत देशभर के करीब 300 से भी ज्यादा जगहों पर यह मनाया गया।