HARDIK PATEL,JIGNESH ,ALPESH

नई दिल्ली : गुजरात विधानसभा चुनाव का बिगुल लगभग बज ही गया है सियासत अपनी चरम सीमा पर पहुंचने के लिए तैयार हो गयी है। पिछले 20 सालों से सत्ता में काबिज भाजपा के लिए इस बार डगर बेहद मुश्किल नज़र आ रही है। मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के विरोध में इस बार तीन ऐसे युवा नेता खड़े हुए हैं जो अकेले ही भाजपा के वर्तमान को इतिहास में बदलने के लिए काफी हैं। आपको बता दें कि इस बार गुजरात में जहां एक तरफ एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर है तो वहीं दूसरी तरफ आरक्षण, शराबबंदी, बेरोजगारी और दलित उत्पीड़न आंदोलन के जरिए अपनी पहचान बनाने वाले हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी ये तीन ऐसे जननेता बनकर उभरे हैं जो भाजपा के लिए सिरदर्द साबित हो रहे हैं।

हार्दिक बनें हैं पटेल समुदाय की पहली पसंद 

आपको बता दें कि इनमें से हार्दिक पटेल सबसे लोकप्रिय जननेता बन कर सामने आये हैं। हार्दिक को गुजरात में ही नहीं बल्कि देश के कई हिस्सों से भी काफी सपोर्ट मिल रहा है। गुजरात में हार्दिक ने अपने आंदोलनों के ज़रिये जो लहर उठायी है उसमें भाजपा की नाव डूबती नज़र आ रही है।25 अगस्त,2015 को अहमदाबाद के जीएमडीसी ग्राउंड में आयोजित हार्दिक की भाजपा विरोधी रैली में लगभग 5 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ उमड़ी थी जिसे देखकर साफ़ अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस कदर हार्दिक का कद बढ़ रहा है।

आपको बता दें कि गुजरात में पटेल समाज सबसे बड़ा वोट बैंक माना जाता है। जिसे इस बार रिझाना भाजपा के लिए टेडी खीर साबित होगा। इसका सबूत भी 2015 में हुए जिला पंचायत चुनाव में से सौराष्ट्र की 11 में से 8 पर कांग्रेस के जीतते ही सबको मिल गया है। इस चुनाव में बीजेपी को बिना किसी सीट लेकर करारी हार का सामना करना पड़ा था।

दलितों के मसीहा हैं जिग्नेश मेवानी 

दूसरी तरफ जिग्नेश मेवानी का नाम भी राजनैतिक गलियारों में जोरो शोरो से गूंज रहा है। जिग्नेश पेशे से एक वकील हैं पर दलितों के हक़ के लिए लड़ने की वजह से गुजरात का दलित समाज इन्हे अपना मसीहा मान रहा है। इसके पीछे एक मुख्य वजह ये भी है कि जिग्नेश वो काम करके दिखाया जिस हक़ के लिए दलित सदियों से लड़ रहे थे। जिग्नेश ने लगभग 20 हजार दलितों को एक साथ मरे जानवर न उठाने और मैला न ढोने की शपथ दिलाई थी। इसके अतरिक्त जिग्नेश के नेतृत्व में दलित समाज ने कई आन्दोलनों से सरकार को हिला कर रख दिया है। पूरे सूबे में कुल 7 फीसदी दलित हैं और जिनके जिग्नेश के पक्ष में जाने से भी भाजपा का सियासी गणित बिगड़ सकता है।

अल्पेश नें पहले ही दी थी धमकी 

तीसरी तरफ गुजरात विधानसभा चुनाव में आरक्षण का मुद्दा लेकर खड़े हुए अल्पेश ठाकुर गुजरात के अल्पसंख्यक समुदाय की तरफ से जननेता बन कर सामने आये हैं। आपको बता दें कि अल्पेश ठाकुर क्षत्रिय-ठाकुर सेना के अध्यक्ष के साथ-साथ ओबीसी एकता मंच के संयोजक भी है. अल्पेश ने अन्य पिछड़ा वर्ग के 146 समुदायों को एकजुट करने का काम किया। एक रैली के दौरान अल्पेश ने धमकी दी थी कि अगर पटेलों की मांगों के सामने बीजेपी शासित गुजरात सरकार ने घुटने टेके तो सरकार को उखाड़ फेंका जाएगा. अल्पेश लगातार बीजेपी को निशाने पर ले रहे हैं।

अल्पेश ठाकुर शराबबंदी और बेरोजगारी को भी मुद्दा बना रहे हैं।अल्पेश ने गुजरात के करीब 80 देहात की विधानसभा सीटों पर बूथ स्तर पर प्रबंधन का काम किया है। अल्पेश के पास ओबीसी समाज का साथ है, जो कि गुजरात में 60 से ज्यादा सीटों पर अपना असर रखता है. पिछले कई चुनाव से ओबीसी मतदाता बीजेपी के साथ हैं, लेकिन कुछ समय से ओबीसी समुदाय नाराज है. अल्पेश इसी नाराजगी को कैश कराने के मूड में हैं।