Nasik Civil Hospital

एक बार फिर इन्सानियत मानवता कर्तव्य सब भ्रष्टाचार कमीशनखोरी रिश्वतखोरी मनमानी की शिकार हो गयी।गोरखपुर मेडिकल कालेज में आक्सीजन के अभाव में करीब पाँच दर्जन बच्चों की मौतें हो गयी और प्रशासन कुम्भकर्णी नींद में सोता रहा।आक्सीजन एक प्राण रक्षक औषधि है जिसकी आवश्यकता मेडिकल कालेज क्या सरकारी सीएचसी पीएचसी और प्राइवेट हर जगह रहती है।आक्सीजन से जान बचाई जा सकती है और आक्सीजन के अभाव में जान चली जाती है।गोरखपुर मेडिकल कालेज में यही हुआ और आक्सीजन के अभाव में दर्जनों परिवारों के घर के चिराग गुल हो गये। इन बच्चों के माता पिता व परिजनों की चीख पुकार से देखने वालों की आंखें छलक पड़ती हैं। जबतक बेगुनाह बच्चों की सामूहिक मौत नहीं हो गयी तबतक किसी का भी इस तरफ ध्यान भले ही गोरखपुर मेडिकल कालेज में आक्सीजन की कमी की तरफ न गया हो लेकिन हादसा होने के बाद से वहाँ पर मुख्यमंत्री से लेकर संतरी तक सभी वहाँ पर पहुँच गए।

एक तरफ तो साठ से ज्यादा बच्चों की मौतों से पूरा वातावरण ही गमजदा है वहीं इस घटना को लेकर राजनीति शुरू हो गयी है।पहले दिन तो सभी ने माना कि बच्चों की मौतें आक्सीजन के अभाव में हुयी हैं लेकिन मामला उझलते व गरमाते ही सरकार ने अपना पल्लू झाड़ना शुरू कर दिया है।अब सरकार मानती ही नहीं है कि इन बच्चों की मौतें आक्सीजन के अभाव में हुयी हैं।सरकार के मंत्रियों की एक टीम ने तो अपनी जाँच रिपोर्ट में यहाँ तक कह दिया कि बच्चों की मौतें पहली बार नहीं हुयी हैं बल्कि इस तरह बच्चों की मौतें हर साल इन्हीं महीनों में होती हैं।अब सरकार अपनी कमी को दबाने व छिपाने में जुट गयी है।मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल को निलंबित कर दिया गया है जबकि उन्होंने निलम्बन से पहले ही अपना इस्तीफा दे दिया है।

सवाल यह उठता है कि जब बच्चों की मौतें आक्सीजन से हुयी ही नहीं तो फिर प्रिंसिपल को निलम्बित क्यों किया गया? दूसरी तरफ इन बच्चों की मौतों में अकेले प्रिंसिपल ही नहीं बल्कि उनके प्रतिद्वंद्वी प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक भी दोषी हैं क्योंकि दोनों के मध्य चल रहे शीतयुद्ध का परिणाम है कि इन बेकसूर बच्चों की जान चली गयी।चिकित्सा अधीक्षक की बात में कुछ ज्यादा दम लगती है कि आक्सीजन सप्लाई करने वाली फर्म को समय पर भुगतान कमीशनखोरी रिश्वतखोरी मनमानी के चलते नहीं हो पाया। उनका यह भी कहने में दम है कि प्रिंसिपल की पत्नी का कालेज में सिक्का चलता था और वह पहले से अधिक कमीशन माँग रही थी।

अधीक्षक के आरोपों की पुष्टि आक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी के बयान से होता है कि वह अपने करीब सत्तर लाख रूपये बकाये के लिये मंत्री से लेकर प्रिंसिपल तक पत्र ही नहीं बल्कि रिमान्डर व लीगल नोटिस भी दे चुका है लेकिन किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। इतना ही गंभीर मरीजों की जान का खतरा पैदा होने की चेतावनी देने के बावजूद किसी जिम्मेदार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।जब साठ से ज्यादा बच्चों की माताओं की गोद सुनी हो गयी तो सप्लायर को पूरा भुगतान दे दिया गया।यहाँ पर सवाल भुगतान का नहीं है यहाँ पर सवाल जिममेदारों की जिम्मेदारी निभाने का है।सवाल मोदी और योगी जी के भ्रष्टाचार मुक्त अभियान से जुड़ा है।एक तरफ दोनों प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार खत्म करने पर लगे हैं तो वहीं उनकी सरकार में आक्सीजन के अभाव में बच्चों की मौतें हो रही हैं।

सरकार की जाँच टीम ने इन बच्चों की मौतों को आक्सीजन के अभाव में होने इंकार कर दिया है।जिनका घर गोदी उजड़नी थी वह उजड़ गयी अब जिसे जो समझ में आये वह कहकर अपना बचाव करे।यह सही है कि सत्ता के साथ व्यवस्था में बदलाव नहीं हो पा रहा है और कमीशनखोर लोग बगुला की तरह योगी के सामने भगत बने खड़े हैं।अगर ऐसा नहीं होता तो गोरखपुर मेडिकल कालेज हादसा न होता और आक्सीजन सप्लाई करने वाले को प्रार्थना पत्र और लीगल नोटिस देकर आपूर्ति बंद न करनी पड़ती।

भोलानाथ मिश्रा ,

वरिष्ठ पत्रकार

( ये लेखक के अपने निजी विचार हैं। ख़बरें 24 का लेखक के अपने विचारों से कोई लेना-देना नहीं है। )